जिंदगी की राहें

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Friday, July 3, 2015

शहर बैद्यनाथ का .


एक सोता-ऊंघता शहर, जिसका शहरी नाम है देवघर !
संथाल परगना, झारखंड के सुरमई इलाके में

बम-बम बम-बम, बोलो बम, जय महादेव, देवाधिदेव
जैसे करतल ध्वनि के साथ, गुंजायमान है शहर !
बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक,
बाबा बैद्यनाथ के इर्द-गिर्द बसा ये शहर !

बस, नहीं है इसको कोई फिकर
तभी तो
सैकड़ों गलियों और तालाबों के किनारे बसा
धार्मिक कोलाहल से परिपूर्ण
एक शांत व उदासीन शहर !

भक्ति, आराधना, आरती, बाबा तुझको अर्पण
पवित्र जल की धारा, ज्योतिर्लिंग पर

सावन-भादो का महिना, सुदूर 108 किलोमीटर दूर
सुल्तानगंज के गंगा के पावन तट से
कठिनाई से परिपूर्ण पर्वतों को पारकर
जल भर कर लाते , कांवड़िया कांवड़ पर

लाखो का जत्था, प्रेम व भक्ति से हो सराबोर
दर्द व दुःख भूलकर
आ जाते हैं, बाबा के द्वार, उनके चरणों पर

अजीब सा शहर, ठहरता, भागता, है छोटा सा
टावर चौक से मंदिर, मंदिर से शिवगंगा
रास्ते में पेडा गली, अनगिनत धर्मशालाएं
पुजारी, पंडो का घर ........
पेड़े रसगुल्ले, चाय के भाड़ व
कचौरी-जलेबी के साथ सोता जागता शहर

मंदिर का सिंहद्वार, पहुचने से बहुत पहले ही
बस एक ही प्रश्न से होते हैं दो-चार
कि "बाबा? कौन पंडा? कौन जिला?"
फिर रुकते ही खुल जाते हैं, बही खाते
निकल आता है वंश व कुल
सहेजा हुआ हिन्दू-रीत, आ जाता है तत्क्षण बाहर

बाबा महादेव व माँ पार्वती के मंदिर की गुम्बदें
बंधा है जिनका सिरा, ढेरों लम्बे लाल फीते से
बस जताता है, दिलाता है याद,
बंधे रहना ही होगा,
अनंत काल तक, जीवन भर !

गजब का ये शहर, कहते हैं,
रावण ने खुद गुस्से में रखी थी, इस शिवलिंग को
और, एक ही रात में बन गया था
विश्वकर्मा द्वारा
एक पत्थर से भव्य मंदिर परिसर

हिन्दू-हिंदी से रचा बसा, पर यहाँ की कोलानियाँ
कहलातें हैं टाउन, जैसे बिलासी, बमपास,
विलियम्स या कास्टर
यहाँ रखे थे पांव विवेकानंद ने, है रामकृष्ण मिशन
तो कभी रहा करते थे शरतचंद्र
यहीं की धरती ने दिया जन्म
कुछ 1857 के योद्धाओं को, तो
है यहाँ सती का ह्रदय पीठ
है यहाँ धर्मगुरु अनुकूल ठाकुर का सत्संग नगर भी

रमणीय पर्यटक स्थल, और भी है यहाँ
जैसे त्रिकुटी, नौलखा व नंदन पर्वत
या फिर तप करने के लिए है न तपोवन
साथ ही बासुकीनाथ का मंदिर।

नदियों पहाड़ों जंगलों के बीच
जहां आदिम आदिवासियों वनवासियों का है निवास
है एक प्यारा शहर, है मेरा देवघर
सोता ऊंघता पर अंदर से खिलखिलाता शहर !
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देवघर, झारखण्ड की सांस्कृतिक राजधानी, जहाँ वर्षों बिताया हमने !!

~मुकेश~