जिंदगी की राहें

जिंदगी की राहें

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Friday, December 27, 2019

असर


ज़ीरो डिग्री पर जम जाना
रूम टेम्परेचर पर पिघल जाना
सौ पर खौलने लगना
तापमान का ये प्रतिकारक असर
परिवर्तित होता रहता है 
स्थिति के अनुरूप
लेकिन
स्नेह कि
अजब-गजब अनुभूति
रहने नहीं देता एक सा तापमान
एक हलकी सी स्मित मुस्कान
और फिर
भरभरा कर गुस्स्से से चूर व्यक्ति
टप से बहा देता है नदी
या फिर कुछ ठंडे बर्फ से एहसास
पिघल ही जाते हैं
एक हल्के से
प्यारे स्नेहिल स्पर्श से ...
~मुकेश~

Tuesday, December 3, 2019

खून का दबाव व मिठास


जी रहे हैं या यूँ कहें कि जी रहे थे
ढेरों परेशानियों संग
थी कुछ खुशियाँ भी हमारे हिस्से
जिनको सतरंगी नजरों के साथ
हमने महसूस कर
बिखेरी खिलखिलाहटें
कुछ अहमियत रखते अपनों के लिए
हम चमकती बिंदिया ही रहे
उनके चौड़े माथे की
इन्ही बीतते हुए समयों में
कुछ खूबियाँ ढूंढ कर सहेजी भी
कभी-कभी गुनगुनाते हुए
ढेरों कामों को निपटाया
तो, डायरियों में
कुछ आड़े-तिरछे शब्दों को जमा कर
लिख डाली थी कई सारी कवितायेँ
जिंदगी चली जा रही थी
चले जा रहे थे हम भी
सफ़र-हमसफ़र के छाँव तले
पर तभी
जिंदगी अपने कार्यकुशलता के दवाब तले
कब कुलबुलाने लगी
कब रक्तवाहिनियों में बहते रक्त ने
दीवारों पर डाला दबाव
अंदाजा तक नहीं लगा
इन्ही कुछ समयों में
हुआ कुछ अलग सा परिवर्तन
क्योंकि
ताजिंदगी अपने मीठे स्वाभाव के लिए जाने गए
पर शायद अपने मीठे स्वाभाव को
पता नहीं कब
बहा दिया अपने ही धमनियों में
और वहां भी बहने लगी मिठास
दौड़ने लगी चीटियाँ रक्त के साथ
अंततः
फिर एक रोज
बैठे थे हरे केबिन में
स्टेथोस्कोप के साथ मुस्कुराते हुए
डॉक्टर ने
स्फाइगनोमैनोमीटर पर नजर अटकाए हुए
कर दी घोषणा कि
बढ़ा है ब्लड प्रेशर
बढ़ गयी है मिठास आपके रक्त में
और पर्ची का बांया कोना
135/105 के साथ बढे हुए
पीपी फास्टिंग के साथ चिढ़ा रहा था हमें
बदल चुकी ज़िन्दगी में
ढेर सारी आशंकाओं के साथ प्राथमिकताएँ भी
पीड़ा और खौफ़ की पुड़िया
चुपके से बंधी मुट्ठी के बीच
उंगलियों की झिर्रियों से लगी झांकने
डॉक्टर की हिदायतें व
परहेज़ की लंबी फेहरिस्त
मानो जीवन का नया सूत्र थमा
हाथ पकड़ उजाले में ले जा रही
माथे पर पसीने के बूँद
पसीजे हाथों से सहेजे
आहिस्ता से पर्स के अंदर वाली तह में दबा
इनडेपामाइड और एमिकोलन की पत्तियों से
हवा दी अपने चेहरे को
फिर होंठो के कोनों से
मुस्कुराते हुए अपने से अपनों को देखा
और धीरे से कहा
बस इतना आश्वस्त करो
गर मुस्कुराते हुए हमें झेलो
तो झेल लेंगे इन
बेवजह के दुश्मनों को भी
जो दोस्त बन बैठे हैं
देख लेना, अगले सप्ताह
जब निकलेगा रक्त उंगली के पोर से
तो उनमे नहीं होगी
मिठास
और न ही
माथे पर छमकेगा पसीना
रक्तचाप की वजह से
अब सारा गुस्सा
पीड़ाएँ हो जायेंगी धाराशायी
बस हौले से हथेली को
दबा कर कह देना
'आल इज वेल'
और फिर हम डूब जाएंगे
अपनी मुस्कुराहटों संग
अपनी ही खास दुनिया में
आखिर इतना तो सच है न कि
बीपी शुगर से
ज्यादा अहमियत रखतें हैं हम
मानते हो न ऐसा !!
~मुकेश~

Monday, November 11, 2019

ब्यूटी लाइज इन द आइज ऑफ द बीहोल्डर


हो बेहद खूबसूरत
इतना ही तो कहा था
कि बोल उठी
लजाती भोर सी
हल्की गुलाबी स्नेहिल प्रकाश के साथ
रंग बिखेरती हुई
- ब्यूटी लाइज इन द आइज ऑफ द बीहोल्डर
तत्क्षण
आंखों की पुतलियों संग
छमकते प्रदीप्त काली चकमक संगमरमर सी
कोर्निया और रेटिना के मध्य
लहरा उठा सारा संसार
कहाँ तक निहारूं ?
हो सकता है,
खूबसूरती की वजह थी
निकटता का अक्षुण्ण एहसास
या फिर
आखों के उस
गहरे लहराते संसार में
प्रेम का चप्पू थामे
डूबता उतराते महसूस रहा था
भीग चुके मन के अन्दर की नमी को
या पता नहीं
थी एक अलग तरह की उष्णता
उसके पास आने के वजह से
दूसरों के आवाजाही से इतर
प्रेम के रौशनदान सरीखे
उसके आँखों में ही
सिमटते हुए
चाह रहा था समझना कि
क्यों न एक सपनों का घोंसला हो
इन पलकों के भीतर
और बरौनियों का झीना पर्दा रहे हरसमय
ताकि प्रेम के आगोश का सुख
ताकते हुए ले सके चुपचाप
निहारने का सुख
निकटता के भाव को नवीनीकृत करने का
एक तर्कसंगत युक्ति भर ही तो है
.... है न !!!
~मुकेश~
साहित्य आज तक 2019 में कविता पढ़ते हुए

Monday, September 30, 2019

प्रेमसिक्त धड़कन



तेज धड़कनों का सच
समय के साथ बदल जाता है

कभी देखते ही
या स्पर्श भर से
स्वमेव तेज रुधिर धार
बता देती थी
हृदय के अलिंद निलय के बीच
लाल-श्वेत रक्त कोशिकाएं भी
करने लगती थी प्रेमालाप
वजह होती थीं 'तुम'


इन दिनों उम्र के साथ
धड़कनों ने फिर से
शुरू की है तेज़ी दिखानी
वजह बेशक
दिल द मामला है
जहाँ कभी बसती थी 'तुम'

तुम और तुम्हारा स्पर्श
उन दिनों
कोलेस्ट्रॉल पिघला देते थे
शायद!
पर, इन दिनों उसी कोलेस्ट्रॉल ने
दिल के कुछ नसों के भीतर
बसा लिया है डेरा
बढ़ा दिया करती हैं धड़कनें
ख़ाम्ख़्वाह!

मेडिकल रिपोर्ट्स
बता रही हैं
करवानी ही होगी
एंजियोप्लास्टी
आखिर तुम व तुम्हारा स्पर्श
सम्भव भी तो नहीं है

Friday, September 6, 2019

जिंदगी का ओवेरडोज़


बचपन में थी चाहतें कि
बनना है क्रिकेटर
मम्मी ने कहा बैट के लिए नहीं हैं पैसे
तो अंदर से आई आवाज ने भी कहा
नहीं है तुममे वो क्रिकेटर वाली बात
वहीं दोस्तों ने कहा
तेरी हैंडराइटिंग अच्छी है
तू स्कोरर बन
और बस
इन सबसे इतर
फिर बड़ा हो गया
जिंदगी कैसे बदल जाती है न
सुर चढ़ा बनूंगा कवि, है न सबसे आसान
पर
हिंदी की बिंदी तक तो लगाने आती नहीं
फिर भी घालमेल करने लगे शब्दों से
भूगोल में विज्ञान का
प्रेम में रसायन का
गणित के सूत्रों से रिश्ते का
रोजमर्रा के छुए अनछुए पहलुओं का
स्वाद चखने और चखाने की
तभी किसी मित्र जैसे, ने मारा तंज़
कभी व्याकरण पढ़ लो पहले
तुकबंदी मास्टर
पर होना क्या था
मृत पड़े ज्वालामुखी से रिसने लगी
श्वेत रुधिर की कुछ बूँदें
जो सूख कर
हो गई रक्ताभ,
खैर न बन पाये तथाकथित कवि
बदलती जिंदगी कहाँ कुछ बनने देता है
कभी दिल से रही करीब, एक खूबसूरत ने
कहा, रहो तुम अपने मूल आधार से करीब
यही अलग करती है तुमको, सबसे
दिमाग का भोलापन ऐसा कि
स्नेह से सिक्त उसके माथे से चुहचुहाती बूंद के
प्रिज़्मीय अपवर्तन में खोते हुए
की कोशिश ध्यान की
की कोशिश मूलाधार चक्र को जागृत करने की
अजब गज़ब पहल करने की ये कोशिश कि
कोशिकाओं की माइटोकॉन्ड्रिया
जो कहलाती है पावर हाउस,
ने लगा दी आग
तन बदन में
जिंदगी फिर भी कहकहे लगाती हुई खुद से कहती है
क्या कहूँ अब जिंदगी झंड ही होती रही
फिर भी बना रहा है घमंड
आखिर खुशियों का ओवेरडोज़
दर्द भरी आंखो मे कैसे बहता होगा
पर बहाव ओवरडोज़ का हो या भावो के अपचन का
लेकिन इंद्रधनुष देखने को भीगापन तो चाहिए ही।
है न।

Wednesday, September 4, 2019

जन्मदिन


जब सैंतालीस,
धप्पा करते हुए बोले अड़तालीस को
जी ले तू भी उम्मीदों भरा साल
है भविष्य के गर्त में कुछ फूल
जो बींधेंगे उंगलियों को
क्योंकि है ढेरों काटें भरे तने
तब तुम सब हैप्पी बड्डे कहना।
जब सैंतालीस
करे याद छियालीस की झप्पी को
जो सर्द निगाहों से ताक कर
नम हो चुकी आवाज में
पिछले बरस थी, बोली
स्नेह पापा का भी समेटो
बरस भर ही तो हुआ
जब गए थे पप्पा इसी दिन
बेशक मम्मी के फोन पर झिझक कर
थैंक यू कह लेना
पर तुम सब मुझे हैप्पी बड्डे कहना
जब सैंतालीस
के सपने में
पैंतालीस ने सिसकते हुए
पापा की जलती चिता की गर्मी को महसूसा
जिसने नम आंखों से था देखा
ऊष्मा में आशीर्वाद
समय बीत गया अब तो
सुनो तुम सब हैप्पी बड्डे जरूर कहना।
जब सैंतालीस
आने वाले उनचास और
फिर खिलखिलाते पचास को
आसमां के सितारों में ढूंढे
और जाते जाते कह दे मुस्कुरा कर
बेशक मर जाना, पर मुक्कू तुम न बदलना
तुम, तुम्हारा बचपना
तुम्हारी सुनहरी छवियां जो अब बता रही उम्र
फिर भी ख़ुश ही रहना
इसलिए मैं खुद कह रहा हूँ
तुम सब, सब सब
हैप्पी बड्डे जरूर कहना।
कहोगे न।
~मुकेश~

Wednesday, August 7, 2019

सावन-भादों

ब्लॉगर ऑफ द इयर के उपविजेता का अवार्ड 

तुम्हारी अनुपस्थिति में
है न,
सावन-भादो
बादल

बारिश
बूँदें !
पर,
हर जगह
चमकती-खनकती
तस्वीर
सिर्फ तुम्हारी !
पारदर्शी हो गयी हो क्या?
या
अपवर्तन के बाद
परावर्तित किरणों के समूह सी
ढ़ल जाती हो
तुम !!
बूँद और तुम
दोनों में
शायद है न
प्रिज्मीय गुण !!
तभी तो चमकती हो
छमकती भी हो
चमकते ही रहना
तुम !!



💝

Wednesday, July 17, 2019

'एक्वारजिया'



'एक्वारजिया'
या करूँ उसका अनुवाद तो
अम्लराज ! या शाही जल !
पर, अम्लरानी क्यों नहीं ?
ज़िन्दगी की झील में
बुदबुदाते गम
और उसका प्रतिफल
जैसे सांद्र नाइट्रिक अम्ल और
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का ताजा मिश्रण
एक अनुपात तीन का सम्मिश्रण
उफ़ ! धधकता बलबलाता हुआ
सब कुछ
कहीं स्वयं न पिघल जाएँ
दुःख दर्द को समेटते हुए
जैसे लाइन ऑफ़ कण्ट्रोल के उस पार से
ताक रहा पाकिस्तान
और फिर उसकी ताकती नज़रों से
खुद की औकात दिखाते
कुलबुलाते कुछ कीड़े इस पार
वही तीन अनुपात एक जैसा ही
और फिर ऐसे ही एक असर का नतीजा
आखिर
क्यों नहीं समझ पाते हम
रोकना ही होगा इस सम्मिश्रण के
कनेक्शन को
रूमानी शब्दों में कहूँ तो
तुम और तुम्हारी नज़र
वही ख़ास अनुपात
कहर बन कर गिरती है मुझपर
अम्लीय होती जिंदगी में
खट्टा खट्टा सा
नमकीन अहसास हो तुम
द्रवीय अम्लराज का दखल
जिंदगी के हर परिपेक्ष्य में
अलग अलग नज़रिये से
फिर से बस यही सोच
कहीं पिघल न जाऊं !!
~मुकेश~


Sunday, June 23, 2019

फितरत



मान लो 'आग'
टाटा नमक के
आयोडाइज्ड पैक्ड थैली की तरह
खुले आम बिकती बाजार में
मान लो 'दर्द'
वैक्सड माचिस के डिब्बी की तरह
पनवाड़ी के दूकान पर मिलती
अठन्नी में एक !
मान लो 'खुशियाँ' मिलती
समुद्री लहरों के साथ मुफ्त में
कंडीशन एप्लाय के साथ कि
हर उछलते ज्वार के साथ आती
तो लौट भी जाती भाटा के साथ
मान लो 'दोस्ती' होती
लम्बी, ऐंठन वाली जूट के रस्सी जैसी
मिलती मीटर में माप कर
जिसको करते तैयार
भावों और अहसासों के रेशे से
ताकि कह सकते कि
किसी के आंखों में झांककर
मेरी दोस्ती है न सौ मीटर लम्बी
छोड़ो, मानते रहो
क्यूंकि, फिर भी, हम
हम ठहरे साहूकार
आग की नमकीन थैली में
दर्द की तीली घिस कर
सीली जिंदगी जलाने की
कोशिश में खर्च कर देते है
पर, नहीं चाहते तब भी
कमर में दोस्ती की रस्सी बांध
समुद्री लहरों पर थिरकना
खुशिया समेटना, खिलखिलाना
खैर, दोस्त-दोस्ती भी तो
माँगने लगी है इनदिनों
फेस पाउडर की गुलाबी चमक
जो उतर ही जाती है
एक खिसियाहट भरी सच्चाई से
सीलन की दहन
बंधन की थिरकन
नामुमकिन है सहन
आखिर यही तो है इंसानी फितरत
है न!!!
~मुकेश~

Thursday, June 6, 2019

सुट्टे की धमक


सुट्टे के अंतिम कश से पहले सोचता हूँ
कि क्या सोचूं ?
जी.एस.टी. के उपरान्त लगने वाले टैक्स पर करूँ बहस,
या, फिर आने वाले पे कमिशन से मिलने वाले एरियर का 
लगाऊं लेखा जोखा
या, सरकारी आयल पूल अकाउंट से
पेट्रोल या गैस पर मिलने वाली सब्सिडी पर तरेरूं नजर
पर, दिमाग का फितूर कह उठता है
क्या पैसा ही जिंदगी है ?
या पैसा भगवान् नहीं है,
पर भगवान की तुलना में है ज्यादा अहम् !
और, अंततः, बस अपने भोजपुरी सिनेमा के रविकिशन को
करता हूँ, याद, और कह उठता हूँ
"जिंदगी झंड बा, फिर भी घमंड बा"
अब, अंतिम कश लेने के दौरान
चिंगारी पहुँचती है फ़िल्टर वाले रुई तक
भक्क से जल उठता है
तर्जनी और मध्यमा के मध्य का हिस्सा
और फिर बिना सोचे समझे कह उठता हूँ
भक्क साला .....
जबकि कईयों के फेसबुक स्टेटस से पा चुका हूँ ज्ञान
गाली देना पाप है
रहने दो, डेली पढ़ते हैं, डब्बे पर
स्मोकिंग इज इन्ज्युरिअस टू हेल्थ
जलते गलते जिगर की तस्वीर के साथ
फिर भी, वो धुएं का अन्दर जाना,
आँखों को बाहर निकलते हुए महसूसना
है न ओशो के कथन जैसा
बिलिफ़ इज ए बैरियर, ट्रस्ट इज ए ब्रिज !
लहराता हूँ हाथ
छमक कर उड़ जाती है सिगरेट, साथ ही
हवाओं के थपेड़े से मिलता है आराम
फिर बिना सोचे समझे महसूसता हूँ
उसके मुंह से निकलने वाले जल मिश्रित भाप की ठंडक
देती है कंपकपी
ऐसे भी सोचा, उसकी दी हुई गर्मी ने भी दी थी कंपकंपी
अंततः
दिमाग कह उठा, कल का दिन डेटिंग के लिए करो फिक्स
प्यार समय मांगता है
बिना धुंआ बिना कंपन
बेटर विदाउट सिगरेट ... है न !!!!
~मुकेश~

Saturday, May 25, 2019

बोनसाई

बोनसाई पेड़ों जैसी
होती है जिंदगी, मेट्रो सिटी में रहने वालों की
मिलता है सब कुछ
लेकिन मिलेगा राशनिंग में
पानी
बिजली
वायु
घर की दीवारें
पार्किंग
यहाँ तक की धूप भी
सिर्फ एक कोना छिटकता हुआ
है न सच
ख़ास सीमा तक कर सकते हैं खर्च
पानी या बिजली
अगर पाना है
सब्सिडाइज्ड कीमत
वर्ना
भुगतो बजट के बिगड़ जाने का
धूप है नेचुरल
पर घर की चारदीवारी
है न डब्बे सी
तो बस
धूप भी आती है
किसी खास खिड़की से
कुछ ख़ास वक़्त
क्या खाऊं या क्या न खाऊं
प्रीकौशंस व एडवाईसेस
साथ ही
महंगाई और कमी की कैंचियाँ
कतरती रहती है
जिंदगी की खुशियाँ
बीतते समय व दिनों के साथ
ढूंढे रहे
कुछ कुछ
सब कुछ
आखिर कभी तो जियेंगे
बिना किसी हिदायतों के
बिना किसी कमियों के
बिना किसी खिड़की वाली चारदीवारी के
बिना किसी दर्द और प्यास के
पर ये जिंदगी
मेट्रो में चढ़ते उतरते
मेट्रो सिटी में
टंच बुशर्ट और टिप टॉप पेंट के साथ
बस रह गयी है
ऊपर से बोनजाई
काश मिल जाता
धरती/आकाश/जल
जी लेते हम भी .....
खैर ........!
~मुकेश~

Wednesday, May 8, 2019

लोड-स्टार

सुनो
सुन रहे हो हो न
ये तुम में मेरा अंतहीन सफ़र
क्या कभी हो पायेगा ख़त्म !
पता नहीं कब से हुई शुरुआत
और कब होगा ख़त्म
माथे के बिंदी से.......
सारे उतार चढ़ाव को पार करता
दुनिया गोल है, को सार्थक करता हुआ
तुमने देखा है?
विभिन्न घूमते ग्रहों का चित्र
चमकते चारो और वलयाकार में
सुर्र्र्रर से घूमते होते हैं
ग्रह - उपग्रह ......!!
अपने अपने आकाश गंगा में
वैसे ही वजूद मेरा .....!
चिपका, पर हर समय का साथ बना हुआ !
जिस्मानी करीबी,
एक मर्द जात- स्वभाव
पर प्यार-नेह को अपने में समेटे
चंदा सी चमकती तुम
या ऐसे कहो भोर की तारा !
प्रकाश भी, पर आकर्षण के साथ
अलौकिक हो न !
अजब गजब खगोलीय पिंडों सा रिश्ता है न
सुनो हम नहीं मरेंगे
ऐसे ही बस चक्कर लगायेंगे !
तुम भी बस चमकते रहना !!
सुन भी लिया करो
मेरी लोड-स्टार !
~मुकेश~



Thursday, March 7, 2019

एक बोसा




किसी एक चांदनी रात में
केदारनाथ सिंह के प्रेम से लवरेज शब्दों को
याद करते हुए मैंने भी,
उसके हाथ को
अपने हाथ में लेते हुए सोचा
दुनिया को इस ख़ास हाथ की तरह
गर्म और सुंदर होना चाहिए
पर सोच हाथों से होते हुए
रुकी उसके ठुड्डी पर
और फिर अटकी
उसके रहस्य से गहराते गालों के डिंपल पर
तत्क्षण वो मुस्काई
मैंने भी कह ही दिया
दुनिया क्यों नहीं, इस तरह मुस्कुरा सकती कि
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
कहते हुए झाँकता चला गया
फिर उसकी आँखों में
वो बेपनाह गहराई वाली नजरों में
डूबते उतरते, महसूस पाया मैं
उन प्रेमसिक्त आंसुओं में नहीं था नमक
थी तो सिर्फ़ गंगा की पाकीज़गी
क्या दुनिया गंगा सी पवित्र नहीं हो सकती
चलो नहीं हो सकती तो क्या
उसकी आँखों में चमकती एक बूँद जो
पलकों से बस गिरने को थी,
और फिर आ गिरी मेरी उंगली पर
मैंने उस ऊँगली को तिरछी कर
उसमे से झांकते हुए उसको ही देखा
था एक प्रिज्मीय अनुभव
दुनिया सिमट चुकी थी
सतरंगे अहसास से इतर
एक चमकती शख़्सियत के रूप में, मेरे सामने
फिर बुदबुदाते हुए हौले से बोला
दुनिया तुम इसके जैसी बनो
मेरी दुनिया ने भी खुश होकर
मेरे बित्ते भर माथे पर
बस ले ही लिया
'एक बोसा', सिर्फ एक।
~मुकेश~

Tuesday, February 5, 2019

बुशर्ट

ह्म्म्म!!
कड़क झक्क सफ़ेद
टंच बुशर्ट !! फीलिंग गुड !!
चुटकी भर रिवाइव पावडर
कुछ बूँद टिनोपाल व नील की
डलवा दी थी न !
कल पहन कर जब निकला था
था प्रसन्नचित
था पहना तने चमकते कॉलर के साथ
धुली सफ़ेद कमीज !!
दिन पूरा गुजरा
गरम ईर्ष्या व जलन भरा दिन
दर्द से लिपटी धूल के साथ
आलोचनाओं की कीचड़ को सहते हुए
हाँ, कुछ खुशियों के परफ्यूम की बूंदे भी
गिरी थी शर्ट पर !!
तभी तो रात तक
सफ़ेद से मटमैली हो गयी बुशर्ट !!
फिर भी मध्यमवर्गीय आदतें
दो दिन तो पहननी थी बुशर्ट !
जबकि कॉलर पर
हो गयी थी जमा
हर तरह की गन्दगी
दिखने लगी थी बदरंग !
कोई नही!!
स्नान कर , महा मृत्युंजय पाठ के साथ
लगा कर डीयों व उड़ेल कर पावडर
जब फिर से पहनी वही कमीज
तो, कॉलर के अन्दर का एक और अस्तर
चढ़ा दिया उसपर !!
अब तो जंच रहा हूँ न!
आखिर जीने के लिए
दोहरी जिंदगी जीनी ही पड़ती है यार!
कॉलर पर कॉलर की तरह !!
-------------------
बिहार में एक कहावत है
"ऊपर से फिट-फाट, अन्दर से मोकामा घाट"



Tuesday, January 15, 2019

आई लव यू


एक घंटे तैतीस मिनट
लम्बे मोबाइल कॉल के बाद
घूमते सांय-सांय करते पंखे के नीचे
सिहरता हुआ, बंद आँखों के साथ
महसूस रहा था 
प्रेम स्पंदित तेज धडकनों को
क्योंकि
प्रेमसिक्त वो ख़ास बोल
दूसरी तरफ से कहा जा चुका था
अंततः !
रूम मेट ने पूछा, झिड़कते हुए
क्या हुआ बे ?
आखिर, अचंभित व स्तब्ध
कुछ घबराहट भरे चेहरे के साथ
भविष्य के आगोश में
गुलाबी होंठो के फैंटेसी के साथ
स्वयं को महसूसते हुए
हकलाते हुए कह बैठा
- आज उसने कह ही दिया
"आई लव यू"
तीन शब्दों का
बेहद स्निग्ध अंग्रेजी स्वरुप
कर रहा था अंदर तक
उद्वेलित
कि जैसे उन शब्दों में उसने देखा हो
मोहब्बत का विश्वरूप !
अपनापन
आकर्षण का आवेग
प्यार भरी नजरें
सम्मोहन लबालब
मिलन की उत्कंठा
समर्पण बेहिसाब
सम्मिलन ... सब सब
प्लाट तैयार था
कहानी लिखी जा चुकी था
इंटरवल के बाद का मंचन भविष्य में था
आने वाले कल की बेचैनी थी !
आखिर प्रेम इतना तो मांगता है न !!

~मुकेश~