जिंदगी की राहें

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Friday, October 21, 2011

पता नहीं क्यूं??




पता नहीं क्यूं??
अपने बच्चो को
सिखाता हूँ सच कहना..
पर कल ही..
उनसे झूठ कहलवाया
कह दो अंकल को
पापा ! घर पर नहीं हैं.........

पता नहीं क्यूं??
पति - पत्नी के रिश्तो पर..
मैं उससे रखता हूँ
उम्मीद - विश्वास कि.....
पर उस दिन ही
मेरी खुद नजर
नहीं बद-नजर..
थी एक लावण्या पर  ....

पता नहीं क्यूं??
माँ- पापा को रहती है
मुझ से उम्मीद..
और क्यूँ ना हो
मै हूँ उनका सपूत
पर कल ही मम्मी ने
फ़ोन पे कहा..कुछ ना उम्मीदी से
"भूल गया न तू!!"

पता नहीं क्यूं??
भ्रष्टाचार दूर करने के
मुद्दे पर, चढ़ जाती है
मेरी त्योरियां
पर पहचानता हूँ क्या
मैं खुद की ईमानदारी ?

पता नहीं क्यूं?
इतना सब हो कर भी
लगता है मुझे
एक आम इंसान
शायद होता है
मेरे जैसा ही ..
क्या ये सच है????

वक़्त के सांचे में
खुद को ढाल
अपनी ही कमजोरियों
के साथ
खुद को बेबस मान
हम को सबके साथ
बस यूँ ही जीना है  .....