जिंदगी की राहें

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Tuesday, March 18, 2014

मृत्यु



काश ! वतन के लिए

हो पाता शहीद

फिर चरकुटठे काफिन में

लायी जाती ....... !!

मेरा शरीर

अगरबती व लोबान के सुगंध में

फूल-मालाओं से प्रदीप्त होता

शायद, कुछ टोपियाँ भी झुकती

आंखे तो नम होती ही ॥ !!


पर लग रहा

किसी भेड़िये के आतंक से

डर कर, हो जाऊंगा शिथिल

फिर वो नोच लेगा बोटी बोटी

कहीं आत्मा भी न मर जाए

क्योंकि फिर

मरे हुए जानवर सा

बदबू देगा ........ मेरा शरीर !!


पता नहीं !!

भविष्य का ???




साथ में, वेब मैगजीन साहित्य रागिनी में मेरा साक्षात्कार पढ़ें, मुझे अच्छा लगेगा !