हर
दर्द को कविता में नहीं पिरोया जा सकता, हाँ उस दर्द को झेलने के बाबजूद जिंदगी जीने की तमन्ना
रचना के काबिल होती है...
एक
दर्दनाक हादसे की शिकार दामिनी (काल्पनिक नाम, यही कह रहे हैं टीवी वाले) के जिन्दादिली को समर्पित उसके ही कथन .....!!
" माँ -पापा को कुछ मत बताना "
- दर्द से डूबी प्रार्थना
जब उसे ले जा रहे थे अस्पताल
"वो बेहोश थी, पर आँखों में आंसू थे"
-सफ़दरजंग अस्पताल के डाक्टर
के हवाले से आयी खबर
" मैं जीना चाहती हूँ "
- ये भी उसने ही कहा
अस्पताल के बाहर किसी ने बताया
.
क्या ये तीन कथन से भी
दर्दनाक !
पर जिंदगी जीने के तमन्ना
से भरी हुई !
हो सकती है कोई रचना !!!