रस्सी.. कूदते समय
ऊपर से उछल कर
पैरों के नीचे से
निकलती जाती है
जगाती है अजब सनसनाती सिहरन एक उत्कंठा कि वो घेरा तना रहे लगातार एक दो तीन ... सौ, एक सौ एक इतनी देर लगातार !!
जैसे एक कसा हुआ घेरा
गुदाज बाहों का समर्पण
आँखे मूंदें खोये
हम और तुम !!
उफ़, वो सी-सॉ का झूला
ऐसे ही झूलते रहा मैं
तुम भी शायद !
चलो !
फिर से गिनती गिनो, बेशक ...
बस पूरा मत करना !!