एडेनियम के पौधे की रिपोटिंग की तो बस उन क्रिया कलापों को शब्द दिए हैं, बेशक कविता न कहें पर संवेदना तो जुड़ी ही है , है न !!
गुलाबी ठंड के साथ आ ही गयी फरवरी
अब आएंगे गुलाबी दिन-सप्ताह
और फिर प्रेम बरसाता
गुलाबों वाला वेलेंटाइन डे भी
फूलों के पौधों को भी चाहिए
इसी खास महीने का प्रेम, तभी तो
रिपोटिंग के लिए
एडेनियम के गमले की मिट्टी को कुरेदते हुए
थी कोशिश कि
जड़ों के रेशे-रेशे के साथ
आ जाए पौधा बाहर
निकल जाए मिट्टी का कण-कण
जीवन में रंग भरने से पहले
अपने अंदर सिंचित करने के लिए ऊर्जा
पौधा ले पाए जड़ों से सांस
इसके लिए जरूरत है रिपोटिंग की
ऐसा बताया एक मित्र ने
तभी तो, एडेनियम के पौधे को जड़ों से
पूर्ण रूपेण बाहर कर
खिली गुलाबी धूप दिखाई है
कई दिनों तक
लगाई लेप एंटी-फंगस की
ताकि हो पाए देखभाल
जड़ों के हर संरचनाओं की।
मरीज को डॉक्टर से ज्यादा पसन्द आते हैं
केयर करने वाले नर्सिंग स्टाफ
कुछ ऐसा ही महसूस रही थी हथेली
एडेनियम के तने की जीवंत छुअन से।
कुछ दिनों की खुली हवा के बाद
एडेनियम ने दिखाई चाहत
फिर से फिक्स आधार की, मिट्टी की
तो फिर
मिट्टी-रेत-ऑर्गेनिक खाद-नीम-कोकोपीट आदि को
सहज हथेलियों से मिलाते हुए
निहार रहे थे, सुषुप्तावस्था में पड़े
एडेनियम के पौधे को
जो सोया-सोया, लगा कुछ ऐसा
जैसे आंखों के कोर से निहार रही हो गुलाबी स्त्री
स्त्रियोचित नज़र की नमी ने,
संवेदनशीलता का पहनाया खूबसूरत जामा
तभी तो गमले में लग कर
एडेनियम मुस्काया
और विस्पर करते हुए बोला
- जरूर खिलूँगा
आखिर प्रेम सिक्त कुछ जल के बूंदों से
सिंचित तो करते ही रहोगे न तुम।
गमलें को हल्की धूप-छाया वाले स्थान पर
रखते हुए, किसी तरह से मैंने भी कहा
इंतज़ार करूँगा, खिलने का एडेनियम।
खिलते-खिलखिलाते रहना तुम।
- तुम भी।
2 comments:
बहुत सुंदर,सारगर्भित रचना..
बहुत सुंदर
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