जब भी मैं उन्मुक्त हो कर
खुशी से झूमकर
बिन सोचे समझे
खिल खिला उठता
तो वो कहती
बड़े बुरे दिखते हो आप
क्योंकि आगे वाले दो दाँतो के बीच का
खुला पट
दिख ही जाता है, दूर से !!
जब भी दिल से
अन्तर्मन से
बहुत सोच समझ कर
उकेरता कागज पर
तो वो कहती
बड़े बुरे दिखते हो आप
क्योंकि
कलम की सोच व
सारी भाव भंगिमाएँ
चेहरे को बुरी बनाती है
दिख जाता है दूर से ....
तभी तो
मैंने
बिना सोचे हँसना
व
सोच समझ कर लिखना
छोड़ ही दिया है
ठीक ही किया न !!