चेहरे पे ब्रश से फैलाता
शेविंग क्रीम..
तेजी से चलता हाथ
आफिस जाने के जल्दी
सामने आईने में
दिखता अक्स...
ओह !!
आज अनायास
टकरा गयीं नज़रें
दिखे ..दो चेहरे..
शुरू होगई
आपस में बात
एक तो ''मैं'' ही था
और..!!!
एक ''आभासी मैं''...!!
.
मैंने कहा
आधी से ज्यादा जिंदगी गयी बीत...
वो बोला...
हुंह! अभी आधी जिंदगी पड़ी है मित्र...
मैंने कहा..
.....तो क्या हुआ? क्या कर लिया?
क्या कर पाउँगा..?
उत्सुकता से पूछा उसने ..
बहुत जल्दी है तुम्हें...??
क्या नहीं कर पाया? सिर्फ ये तो बता?
पढ़ लिया उसने
मेरे चेहरे पर
मेरा जवाब..और हताशा भी
मुझे खुद से थी बहुत सी उम्मीदें...
थे खालिस अपने सपने..
जुडी..थी जिनसे अपनों की उम्मीदें..
कहीं खोती चली गए...
जिंदगी के दोराहें में.....
वो हंसा... बेवकूफ इंसान!!
सपने, उम्मीदें, आवश्यकता,...
पूरे होने का नहीं होता पैमाना..
होती है सिर्फ सुन्तुष्टि
होती है सिर्फ खुशियों की महक..
आँखे बंद कर के सोच
फिर होगा अनुभव
कितना कुछ पाया..
क्या शाम को घर पहुचते ही
नहीं करती स्वागत
कुछ चमचमाहट भरी आँखे..(
क्या कभी किसी मित्र ने
तुम्हें देख, फेरा चेहरा..??
नहीं न..........
ऐसी थी उम्मीद कभी?
यही तुने पाया .
कम है क्या??
खुश रहना सीख..
अब तक कट चुकी थी दाढ़ी
''आभासी मैं'' से
फिर मिलने का वादा ..
आईने में दिखा
अपने ही अक्स में
कुछ नया सा..अनोखा आकर्षण
थोड़ी ज्यादा चमक..
थोडा ज्यादा विश्वास
क्योंकि आभासी चेहरे ने
आईने के ओट से..
मुझे दिखा दी थी
मेरी ही अपरमित क्षमताओं की पोटली
और जगा दी थी मुझमें
फिर से उम्मीद
बहुत सारे उम्मीद...