३० नवम्बर को मेरी विवाह वर्षगांठ है, पता नहीं कब और कैसे दस वर्ष बीत गए...पुरे दस वर्ष........!! अपने हमसफ़र के लिए कुछ पंक्तिया जोड़ी है, आपलोगों के समक्ष रखना चाहता हूँ............. )
एक दिन वो आएगी
चुपके चुपके
इतने चुपके से
कि न तो होगा रूह को महसूस
न जिस्म महसूस पायेगी कोई आहट
और हो जायेगा प्यार.....
पर हुआ नहीं ऐसा..
वो आयी जरुर
एक पारंपरिक पारिवारिक अनुमति से
मुहं-दिखाई में
माँ-पापा ने किया पसंद
और फिर मिलने का अवसर मिला
पर क्या यार...........!!
पहले नजर में न हो पाया प्यार
कहाँ गयी वो सिहरन और कहाँ गए वो ख्वाब
मेरे खबाबो में थी कोई अनदेखी अनजानी हूर
तभी मिला एक अपने का अपनापन
और उसकी सरल सलाह
सोच को बदलो
वास्तविकता के धरातल पे उतरो
फिर देखना, महसूसना
सोच न बदली इतनी जल्दी
और न ही बदल सका मैं
किया उसी ने कुछ किया ऐसा
उड़ गए होश
हुआ मदहोश
मदमस्त हो गाया मैं
मदमस्त हो गाया मैं
हो गया मैं उसका
अग्नि के सात फेरों के साथ
याद नहीं फेरों के समय लिए गए वादे
पर फिर भी हूँ में उसका
बीते दिन और बीते बहुत सारे बरस
कभी हुए घमासान झगडे
पर कही 'था' प्यार इन सब के बीच
दिल के किसी कोने को था पता
'था' नहीं वो प्यार 'है'
तब भी था और अब भी है
तभी तो गुजरे इतने बड़े लम्हे
लगते हैं दिन चार
बहुत बार गुस्से में निकला -
क्यूँ आयी तुम मेरे जीवन
पर अंतर्मन?
सोच नहीं पाता
रह नहीं सकता उसके बिन
नहीं जानता क्या होता है प्यार
पता नहीं मुझे है भी उससे प्यार
या सिर्फ दिखाता भर हूँ
बारम्बार...
पर जो भी है
वो हर पल .
मेरे संसार
मेरी खुशियाँ
मेरे दर्द
मेरे बच्चो
मेरे अस्तित्व
मैं दिख जाती है
बार बार
हर बार
मेरी हमसफ़र
मेरी दुनिया
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भावनाओं की अभिव्यक्ति पर
दिमाग का पहरा है
यकीन करो मेरा प्यार
आज भी उतना ही गहरा है.
दस वर्ष बीत गए
यूँ देखते -देखते
रास्ते तय हुए
गिरते सँभालते .
तुमने जिस दिन खुद को
सपनो को , भावनाओं को ,
उम्मीदों को, आस्थाओं को ,
मुझे सौंप दिया था ..
उसी पल मैं ''कुछ ''से
''बहुत कुछ ''...हुआ था .
तुम साथ रहना..
मैं सब संभाल लूँगा ..
आज फिर वादा है ..
कोई सपना टूटने ना दूँगा..
तुम्हारा विश्वास आज तक
रंग ले आया है,
ज़िंदगी ने चाहे हमें
जितना आजमाया है ...
तुमने हर हाल मैं साथ निभाया है ..
"अंजू ..."
आज फिर तुमपर
ढेरों प्यार आया है...!!!!
ढेरों प्यार आया है...!!!!