जिंदगी की राहें

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Friday, June 30, 2017

प्रेम का भूगोल



आज अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉग दिवस के तौर पर हम सभी ब्लॉगर मना रहे हैं , तो ये प्रेम कविता झेलिये :)

भौगोलिक स्थिति का क्या प्रेम पर होता है असर ?
क्या कर्क व मकर रेखा के मध्य
कुछ अलग ही अक्षांश और देशांतर के साथ
झुकी हुई एक ख़ास काल्पनिक रेखा
पृथ्वी के उपरी गोलार्ध पर मानी जा सकती है ?
ताकि तुम्हारे उष्ण कटिबंधीय स्थिति की वजह से
ये आभासी प्रेम का तीर सीधा चुभे सीने पर
फिर वहीँ मिलूँगा मैं तुम्हारे सपने में
आजाद परिंदे की मानिंद
और हाँ, वो ख्व़ाब होगा मानीखेज
उस ख़ास समय का
जब सूर्य का ललछौं प्रदीप्त प्रकाश
होगा तुम्हे जगाने को आतुर
हलके ठन्डे समीर के कारवां में बहते हुए
तुम्हारे काले घने केश राशि को ताकता अपलक
उसमें से झांकता तुम्हरा मुस्कुराता चेहरा
कुछ तो लगे ऐसा जैसे हो
बहती गंगा के संगम सा पवित्र स्थल
और खो चुके हम उस धार्मिक इह लीला में
क्या संभव है हो एक अजब गजब जहाज
जो बरमूडा ट्रायंगल जैसे किसी ख़ास जगह में
तैराते रहे हमें
ताकि ढूंढ न पाए कोई जीपीएस सिस्टम
बेशक सबकी नजरें कह दे कि हम हो चुके समाधिस्थ
पर रहें हम तुम्हारे प्रेम के भूगोल में खोएं
एक नयी दुनिया बसायें
अपने ही एक ख़ास 'मंगल' में
काश कि तुम मिलो हर बार
मेरे वाले अक्षांश और देशांतर के हर मिलन बिंदु पर
काश कि
हमारे प्रेम का ध्रुवीय क्षेत्र सीमित हो
मेरे और तुम्हारे से ....

~मुकेश~


Wednesday, June 21, 2017

~पप्पा~



बेवजह मुस्कुराते हुए पापा
इनदिनों खिलखिलाते नहीं हैं
आजकल बिना गुस्सा किये
बच्चो से इतराते हुए
नकार देते हैं, हम सबकी कही बातों को
शायद वे ऐसा करके
अपने दर्द को जज्ब करते हुए
दूसरे पल ही देखते हैं नई जिंदगी

सबसे प्यारा लगता है,
जब वो मम्मी के बातों को करते हैं अनसुना
फिर मम्मी के चिल्लाने पर तिरछी हंसी के साथ निश्छल भाव से देखते हैं ऐसे
जैसे कह रहे हों,
बेवकूफ, मैं तो अपनी ही चलाऊंगा ताजिंदगी
बेशक तुम्हे लगे बात मान लूंगा

खाते हुए खाना या पीते हुए दूध
अक्सर गन्दा करते हैं शर्ट,
फिर होती है उनकी जिद
पल में बदलने की
पापा को अब भी पसन्द है
झक्क सफेद बुशर्ट पहनना
पापा नहीं चाहते कभी भी
बूढ़ा कहलवाना

मम्मी के इतना भर कहते ही कि
बूढ़े हो गए हो
चाहते हैं तन कर खड़े होने की करें कोशिश
आंखों में बचपना कौंधता है
या शायद अपनी खूबसूरत जवानी

बाहर से कमरे में ले जाते समय
चौखट पकड़ कर
मचाते हैं जिद
कुछ देर और....
शायद खुले आकाश से रहना चाहते हैं पापा
पापा हम सबके आसमान ही तो हैं

अपने छोटे बेटे को देखते ही
आंखे छलछला जाती है इनकी,
क्योंकि उम्र केयर मांगती है
जो बेहद संजीदगी से पूरा कर पाता है वो
पर बड़े बेटे से
कभी भी बहुत करीब न होकर भी
उसके दूर जाने की कसक
नम कर जाती है पलकें इनकी ।

जिंदगी हर पल नम होती हुई बताती है
पापा आपका जीना,
बताता है अभी मुझमे भी बचपना है
थोड़ा बहुत बाकी

इनदिनों आपके बचपन में
ढूढने लगा हूँ अपना बुढापा
दिन बेहद तेजी से गुजर रहा है पापा।

जीते रहिये पप्पा 😊

~मुकेश~

Friday, June 16, 2017

टिफिन


एयरटाइट प्लास्टिक टिफिन के
डब्बे का
लिड युक्त लीक प्रूफ ढक्कन
से बंद होना
इस आश्वस्ति के साथ 
कि संजोयी गयी है ताज़गी
तभी तो
भोजन की सोंधी सोंधी ख़ुशबू को
संजोये रखता है
ये कलरफुल डब्बा
अपने अन्दर
डब्बे के अन्दर ही
रोटियां तो कभी परांठे
लिपटी होती है
सिल्वर फॉयल में
जैसे किसी ने बाहों में भर कर
फूंक रखी हो ताजगी
साथ ही होती है
सब्जी की अलग कटोरियाँ
सलाद व अचार जैसा भी कुछ
ऐसे लगता है,
जैसे प्यार का बहता स्वरुप !!
करीने से रखा एक चम्मच भी
माने, एक परिवार जिसके
कुछ सदस्य हैं साथ साथ
अलग अलग रंग रूप में
दोपहर में
जैसे ही खुलता है
ये ढककन और हटती है फॉयल
खुशबू भोजन की
खुशबू प्यार की
खुशबू मेहनत की
खिलखिला कर कह उठती है
प्रेम का रास्ता
बनता है
उदर के माध्यम से ही
हर बार
पेट भर जाने के बाद
अँगुलियों से आती है खुशबू
तुम्हारे प्यार की
बस
प्रेम और पेट की भूख बनी रहे !
एक अजूबा सा ख्याल टिफिन के डब्बे से !!

पुरवाई पत्रिका में मेरी कविता