कमबख्त, ये सेलफोन!
जब आया तो लगा
जैसे संपर्क सूत्र बढ़ाएगा..
हर अपने को..
बतियाते हुए
और करीब लाएगा
पर विज्ञान का
एक साधारण आविष्कार..
उस छुरी-चाकू की तरह है
जो काटता है फल..
वो काट सकता है गरदनें..
इस मुए
सेलफोन ने
छिन ली मिलने की लालसा..
बस बतिया कर,
पूछ कर क्षेम-कुशल..
रह जाते हैं,
स्वयं को सिमेट कर
खुद अपने ही खोल मे !
जिन रिश्तों के लिए मरते थे
वो अब 'हाय! हैलो!'
में लगा है मरने..
कहीं ऐसा तो नहीं
कि, इस मोबाइल के
कारण ही रिश्ते भी
लगे हैं रिसने..
मुट्ठी में भरे रेत की तरह
भरभराने लगे हैं...
है न... सच.. कुछ ऐसा ही !!
काश,
सेलफोन-रिचार्ज की तरह
रिसते हुए रिश्ते
भी हो पाते रिचार्ज..
पुल बांधता ये सेलफोन..
ले आता रिश्तों में सामिप्य..
काश!
जैसे तरंगे भर देती हैं
मुर्दे में भी जान..
ठीक वैसे,
सेल फोन की ध्वनि तरंग
से भी, बज उठती मन के भीतर...
आनंद की एक मृदंग..
काश!
हम वाकई महसूस कर पाते
एक मोबाइल की सार्थकता.....