जिंदगी की राहें

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Tuesday, July 16, 2024

लव एंड लस्ट


वर्षों की पहचान, अंतरंगता और 

स्नेहिल सम्पर्क की सीढियों पर थम कर 

आया एक प्रश्न।

ये लव है या है लस्ट।

प्रेम व वासना के महीन अंतर में 

कहीं तैरने लगा एक जरुरी प्रश्न

पर क्या ही कहूँ कि अगर 

है दोनों जरूरी, है अन्योन्याश्रय


क्योंकि वर्षों की अंतरंगता के

बाद स्वीकारा तो है तुमने कि

कहीं हुआ तो नहीं प्रेम?

शायद ये एहसास है 

या वासना का ही उद्गार था

जो प्रश्न बन कर कौंध गया।


प्रश्न तो कभी कभी

बस होते हैं जरूरी

क्योंकि प्रेमिल संवाद को देते हैं ठौर।

ठीक कुछ ऐसा जैसे 

मेरे सपनीली अँधेरी शाम में

तुम हुई थी करीब

खोती हुई चेतना को मेरे कांधे पर रख कर

और मैं महसूस रहा था

उन गर्म सांसों से भरी आहों को

जो कॉलर के पास बनियान को भिगोती रही

और भीगता मेरा मन

कह ही उठा - ये वासना ही तो है

जो जी रहा हूँ इस खास पल को

तभी सपने ने टूट कर पूछा 

लव या लस्ट?


इस अजीब से प्लेटोनिक पल में

बेशक़ जी रही थी वासना

पर ढूंढ रही थी प्रेम को।

तभी तो तुम्हारे कांपते लबो ने कहा

मुझे वासना नहीं,

तुम्हारा प्रेम चाहिए।

और, और...मिला था एक बोसा।

शायद गर्माहट भरी साँसों ने

मेरे होंठों को काट लिया था।


सपनों को कहाँ पता होता है

किसी भी भावों का

वो तो गर्म चाय के केतली की

वो वाष्प है, जिसमें स्वाद नहीं होता

पर कह ही उठते हैं

आह, इस चाय पर मर जाऊं


पता है नहीं मिलेगा कभी

वो ख़ास आगोश

कि खुद से पूछूं -

जी रहा हूँ 'लव या लस्ट'

पर, पर सांसों की तरंगदैर्ध्य

हर उस पल में रही उच्चतम बिंदु पर

जब जब तुम थी कहीं 

मन के बेहद करीब।

हां, प्रेम को चाहिए गर्माहट 

है मन को जरूरत

तुम्हारी बांहों का आगोश 

हथेलियों ने हर बार 

खुद ही एकदूसरे को रगड़ कर

पैदा की है चिंगारी

चादर की सिलवटों ने भी 

उसी क्षण पूछा था

- क्या बॉस, लव या लस्ट।


अंततः बस कहना ही पड़ा

कितनी खूबसूरत हो तुम

ये तो कहलायेगा -  सिर्फ प्रेम।

एक यादगार तस्वीर 





2 comments:

Onkar said...

बहुत सुंदर

आलोक सिन्हा said...

बहुत सुन्दर