याद है गाँव के घर का
वो अंगना
कुछ साल ही तो गुजरे होंगे
यादों के झरोखे में
सब चकमक करने लगता है
चढ़ती उतरती निक्कर
धुल-धक्कर पसीने से भींगा बदन
दूध-भात का कटोरा
मैया का डाँट भरा प्यार
और, और भी तो है
यादों के बल्व में दिखता है
छोटी छोटी फुदकती गोरैया
च्वीं च्वीं च्वीं .......
मैया ने जैसे ही
आँगन में फैलाया गेहूं
छोटे छोटे सोन-चिडाई
पहुँच आते थे फुदकते हुए..
फिर वही
च्वीं च्वीं च्वीं .....
आज भी यादों के जेहन
में दिखता है वो प्यारा
खुद का चेहरा
चढ़ते उतरते निक्कर के साथ
कैसे रहता था एक दम शांत
ताकि वो छोटी प्यारी फुद्कियाँ
न उड़ जाएँ
बेशक होते रहे बरबाद
फैलाये हुए चावल या गेहूं
वो सुकून वो च्वीं च्वीं ...........
फिर दिन बदला, बदला असमान
हरियाली, खेत, कीचड
कुछ भी तो नहीं दिखते
कहाँ फंस के रह गए
इस मानव जंगल में
एक दम निरीह अकेले....
नहीं दिखती अब वो
छोटी छोटी गोरैया
तो कहाँ दिखेगी उनकी झुण्ड...!
अब तो वो काला कौवा
भी नहीं उड़ता आस्मां में
जिस से दूर भागते थे हम..
.
अब तो ये आसमां और धरती
सब ऐसे बदल रही
जो भी थे बचपन के हमारे अपने
सब हो रहे विलुप्त
चाहे हो कौवा या
हो गोरैया
या हो प्यारी मैया
सब बदल गया न.....!!!
53 comments:
sahi mein khub likha hai ....aaj kal chidiya durlabh ho gayi hain....par mere ghar par khub aati hain....aur mere ghar ki raunak badha kar ...ek shant mahol ko apni chiv chiv se bhar deti hain :)))
अनुपम भाव लिए ... बेहतरीन प्रस्तुति।
बस च्विं च्विं यादें रह गई हैं ... आ जाती हैं आँगन में फुदकती हुई
आपकी बेहतरीन कविताओं में एक ... बहुत बढ़िया मुकेश भाई...
वाह....
बेहतरीन कविता....
रचना प्रकाशन के लिए ढेरों बधाईयाँ
अनु
सही कहा सब बदल गया है नही रहा वो आसमां नही रही वो धरती नही रहा वो आँगन ……बेहतरीन रचना।
भावपूर्ण रचना.....
छोटे छोटे सोन-चिडाई
पहुँच आते थे फुदकते हुए..
फिर वही
च्वीं च्वीं च्वीं ...
adbhut bhav....kai sari beeti yaadon se man ghum aaya....ehsaso ko jeevant karti...sunder shabdo se saji....behatrin rachna...badhai mukesh ji :)
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना.बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति।
छोटी छोटी फुदकती गोरैया को रोज मेरी निगाहें भी ढुंढती है .... :)
आपके बचपन के साथ मैं भी बचपन में कुछ पल जी ली .... :D
आभार और शुभकामनाएं .... !
bhaavpoorN ...SUNDAR ABHIVYAKTI ..
badlaaw his shashwat hai...baaki sab badalta hai.....
sunder rachna...bhav vibhor karti
सच ही कहा आपने अब तो बस यादों की चिड़िया ही फुदकती है वो भी ख़यालों में बछों को सुनने के लिए अब बस यही यादें ही तो रह गयी है वरना अब कहाँ बची है है वो चिड़िया की मिट्ठी सी च्विं च्विं, वो कऔवे की कांव-2 :)अब तो बस अब तो बस इमारतों के जंगल में वाहनो की धौं-2 है .... बहुत ही बेहतरीन भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
सच ही कहा आपने अब तो बस यादों की चिड़िया ही फुदकती है वो भी ख़यालों में बच्चों को सुनने के लिए अब बस यही यादें ही तो रह गयी है वरना अब कहाँ बची है वो चिड़िया की मिट्ठी सी च्विं च्विं, वो कऔवे की कांव-2 :)अब तो बस इमारतों के जंगल में वाहनो की धौं-2 है .... बहुत ही बेहतरीन भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
Kadambari Goel Jain : atyadhik saral, spasht evam swaabhavik prastuti...... 'haan badal hi to gayaa hai sab kuchh' .....!!
4 minutes ago · Unlike · 1
गौरेया का अमूमन न् दिकाई देना सच में बहुत बड़ा आघात है मुकेश भाई
रचना बहुत सुंदर हुई है और संयोजन उससे भी ज्यादा आकर्षक
बधाई स्वीकार करें प्रिय अनुज !
बड़ी ही मासूमियत और प्यार से बहुत संजीदा बात कह गए.
भाव का तो क्या कहना शब्द संयोजन भी गज़ब का है.
खलिहान ढले कंक्रीटों में .गोरिया का घर कहीं खो गया ..खुला हुआ आसमान भी अब सिकुड़ कर छोटा हो गया .बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने मुकेश इस रचना को ..दाना डालो चिड़िया कहीं नजर नहीं आती ..बहुत बेहतरीन
sach mein sab kuch badal gaya hai yahan tak ki insaan bhi badal gaya ab.Ab na usme koi emotions rahi na doosron ki emotions ki kadar usko .Pragati ke path par chalte hue hum bhut door nikal aaye n sab kuch peeche choot gaya
Dimple Kapoor
अब तो ये आसमां और धरती
सब ऐसे बदल रही
जो भी थे बचपन के हमारे अपने
सब हो रहे विलुप्त
चाहे हो कौवा या
हो गोरैया
या हो प्यारी मैया
सब बदल गया न.....!!!
हां सही कहा ....
आज के शहरीकरण और आधुनिकता ने सब कुछ बदल कर रख दिया ....अब पहले जैसा कुछ नहीं हैं
sach mein sab kuch badal gaya hai yahan tak ki insaan bhi badal gaya ab.Ab na usme koi emotions rahi na doosron ki emotions ki kadar usko .Pragati ke path par chalte hue hum bhut door nikal aaye n sab kuch peeche choot gaya
Dimple Kapoor
आँखों के समक्ष सारे दृश्य साकार हो गए..बड़ी ही प्यारी सी कविता है..
बड़े दिनों बाद..'माँ' के लिए 'मैया' शब्द का प्रयोग सुना/पढ़ा
अब पहले जैसे माहौल कहा रह गये है..
सब बदल रहा है....
बहूत सुंदर बेहतरीन रचना...
:-)
बेहतरीन कविता...
बेहतरीन कविता...
सुंदर..... बहुत कुछ बदला है यकीनन , और इस बदलाव में जाने कहाँ खो गयी फुदकिया .....
इन का फुदकना कभी बंद न हो बस यही दुआ है !
आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है प्लस ३७५ कहीं माइनस न कर दे ... सावधान - ब्लॉग बुलेटिन के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
बहुत बढ़िया रचना...दिल को छू गई...
Sundar rachana aur sundar chitr....ajkal ye chidiya to nazar hee nahee aati...
चिरैया को ऐसे झूलते देख कर मन बचपन में झूल जाता है।
उन यादों का क्या करें जहाँ अभी भी फुदकती हैं चिव-चिव करती गौरैया, जहाँ अब भी दाने फैलाती है मैया...वहां अब भी सब कुछ जैसा का तैसा है... सहजता से बचपन का चित्र दिया है आपने...
ek chalchitr ki tarah padhi jaa sakne waali rachna ... ye bahut badi baat hoti hai ki hum drishy piro den paathak ke antarmann me.. haardik shubhkaamnaayen..:)
यादों का सुनहरा संसार .....
sach kitne ache the wo bachpan ke din
jab sonchriya angan mein humare saath fudakti thi .....shukriya kavita ke madhyem se wapash us bachpan ko yaad dilane ke liye ................
वाह! तस्वीरे भी सुर मिला रही हैं कविता से!
वे फिर आएँगी ...
शुभकामनायें !
बिल्कुल सही लिखा है आपने...आज वास्तव में बहुत कुछ बदल गया है...। शायद यही हर युग, हर काल में होता आया है...। पर इंसान अपनी यादों में पुराने दिन ही खोजता है...।
मेरी बधाई...।
प्रियंका
बिल्कुल सही लिखा है आपने...आज वास्तव में बहुत कुछ बदल गया है...। शायद यही हर युग, हर काल में होता आया है...। पर इंसान अपनी यादों में पुराने दिन ही खोजता है...।
मेरी बधाई...।
प्रियंका
सच कहा, दुनिया कितनी बदलती जा रही है. यहाँ दिल्ली में न काला कौआ दीखता है न गौरैया. गौरैया की चीं चीं अब भी कानों में गूँजती है और पुराने दिनों की याद दिलाती है. सुन्दर रचना, बधाई.
सच है, कभी आंगन में फुदकते रहते थे, छत की कड़ियों में घोंसले बनाये रहते थे ... कहाँ गये वे दिन?
बहुत ही प्यारी फुदकियां, पर अब दिखती कहां हैं।
............
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Meenakshi Mishra Tiwari: Ab kahan gauraiyya.. Kahan wo angana... Bass yaadein hain saath kuchh... Jeewan ki aas kuchh...
23 hours ago via Mobile · Unlike · 2
Shweta Agarwal: jab wo aangan saath na raha....bachpan saath na raha....maiya ki daant nahi padti............. to fudakti hui gauraiya ki chwi.n chwi.n kaise saath nibhati...........fir bhi aaj bhi us sune angan mein jo kabhi hara bhara hua karta tha......ussi aangan mein gauraiya fir se fudakne ko fir se sone se gehun ko chwi.n chwi.n karti hui chunne ko hai taiyaar....lekin bas intezaaaar mein..........
22 hours ago · Unlike · 2
Ankit Khare: :) gaanv ki yaad dila di mukesh bhaiya ..... iss kavita mai bahut saari sacchai hai jo mere bachpan se judi hui hai ,....... gaaanv ki wo yaade wo baate sab kuch jehan mai fir se ghum gya ,.. really thnkz a lot to shr sumthing which takes me in memory lane .... kyunki kuch yaaade bht khoobsurat hoti hai .. sukun milta hai
20 hours ago · Unlike · 1
Chanda Jaiswal: bahut hi umdaa
19 hours ago · Unlike · 1
Brajrani Mishra: यादों के बल्व में दिखता है
छोटी छोटी फुदकती गोरैया
च्वीं च्वीं च्वीं .......गज़ब का लिखा है.
19 hours ago · Unlike · 1
Asha Pandey: MAA+ANGAN +GOURAIYYA=BACHPAN
SHEHER-ZINDGI =YAADEIN
18 hours ago · Unlike · 1
Shashi Mittal: wo bachapan ka sona apni baat manwana chhoti chhoti baato pe ruth jana...sab yaad aata hai bas
17 hours ago · Unlike · 1
Poetess Rajni Nayyar Malhotra: har rachna aapki kabile tareef hoti hai.............
12 hours ago · Unlike · 1
Anoop Shukla: Mukesh Kumar Sinha bhaiya rocks
9 hours ago · Like
Kadambari Goel Jain: aap hamesha hi bahut achchha likhte hain :)
5 hours ago · Unlike · 1
Vandana Singh: उन भावों की याद ..जो लुप्त प्राय हो रहे हैं... बहुत अच्छा लगा पढना...:)
about an hour ago · Unlike · 1
जो भी थे बचपन के हमारे अपने
सब हो रहे विलुप्त
चाहे हो कौवा या
हो गोरैया
या हो प्यारी मैया
सब बदल गया न.....!!!
...सच में आज हम विकास और आधुनिकता के नाम पर अपने आप से कितने दूर हो गए हैं...
दुबारा पढ़ना बहुत अच्छा लगा. अपने घर की फुदकती गौरैया याद आ गई. पुनः बधाई मुकेश.
बहुत सुन्दर , मुझे भी बचपन याद दिल दिया ...
बेहतरीन अभिव्यक्ति
अब तो ये आसमां और धरती
सब ऐसे बदल रही
जो भी थे बचपन के हमारे अपने
सब हो रहे विलुप्त
चाहे हो कौवा या
हो गोरैया
या हो प्यारी मैया
सब बदल गया न.....!!!
बेहद सुंदर भाव !
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अब की होली
मैं जोगन तेरी होली !!
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
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