पंखे के नीचे
बिस्तर पर लेटा था पुरुष
पर सपने में तितलियों सी तैरती रही स्त्री
यहां तक कि कॉलेज नोट्स से
ज्ञान बटोरने की कोशिश कर रहा था पुरुष
तो किताब के पन्ने से टपकी तस्वीर, मुस्काई स्त्री
कामाग्नि में अंधा
स्त्री-देह जलाता, अपराध करता पुरुष
पर चाहते, न चाहते फिर भी, सहचर बन गई स्त्री
जब बंजर जमीन पर, बुझे मन से
प्रेम तलाश रहा था पुरुष
तब भी दूर हरियाई धरती सी ताक रही थी स्त्री
पुरुष हरसमय ढूंढता रहा स्त्री।
स्त्री मान बढ़ाती कहती रही, तुम सर्वश्रेष्ठ हो पुरूष !
... है न!
2 comments:
बहुत सुन्दर
बहुत खूब ... स्त्री और पुरुष की सोच के दायरे को बाखूबी छुआ है रचना ने ...
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