जिंदगी की राहें

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Thursday, November 27, 2014

वर्चस्व की लड़ाई


कुछ बातें अचंभित करती है
जैसे कहते है,
जंगल में, होता है एक शेर!
बेवकूफ बनाते हैं, देखा है मैंने
गिर वन में, कुछ दूरी पर 
दो !! अलग अलग शेर
वैसे फारेस्ट ऑफिसर भी बता रहा था
होती है, वर्चस्व की लड़ाई उनमें !
गुर्राते हैं, एक दुसरे पर, भाव खाते हैं
ऐसे जैसे, कोई एक ही है
है उस जंगल का शहंशाह
ये भी बताया उन्होंने
कई बार उनके बीच के झगडे में
लगा कोई एक मारा जायेगा !
आखिर उन्हें बहुत रखना पड़ता है ध्यान
संरक्षित जीव जो हैं !
पर घटनाएँ, आश्चर्यचकित करती हैं
लड़ाई शेरों के बीच होती है
लेकिन मारे जाते हैं
बारहसिंघा, खरगोश या बकरे भी
आखिर हर बड़ी लड़ाई की परिणति
ख़त्म होती है
दावत और राउंड टेबल पर
फिर परोसे जाते हैं 'नरम मांस'
और हाँ! शेर क्या सियार भी नहीं मरते
आखिर कोई समझौता करवाने वाला भी तो हो
हमारे राजनितिक शेरों के बिसात में भी
होता है, ऐसा ही न !

मैंने अपने में खरगोश देखा है !
पुनश्च : 
शेरों के वर्चस्व की लड़ाई जारी रहेगी,
ताकि लोकतंत्र कायम रहे
यश-ऋषभ हमिंग बर्ड के साथ 

Tuesday, July 8, 2014

मैं कवि नहीं हूँ

 
 
नजरों के सामने
फड़फड़ाते पन्नों में
झिलमिलाते शब्दों के समूह
जिनमें कभी होता प्यार
तो कभी सुलगता आक्रोश
कभी बनता बिगड़ता वाक्य विन्यास
कह उठता अनायास
“मैं कवि नहीं हूँ”

सफ़ेद फूल में, चमकते तारे में
धुंधले दर्द में, सुनहले मुस्कुराहट में
गुजरे यादों मे, अखरते वर्तमान में
ढूँढता हूँ कवितायें
पर, पता है खुद को
“मैं कवि नहीं हूँ”

छंदों में, गीतों में,
गजल में, शेर में,
यहाँ तक की हाइकु-हाइगा में भी
देखता हूँ खुद का अक्स
पर हर बार सुगबुगाते एहसास
“मैं कवि नहीं हूँ”

मेरे अंदर की कोशिकाएं
उनके समूह उत्तक
या फिर हर एक अंग व अंगतंत्र
मेरा जिस्म भी, खिलखिला कर कह उठा
“मैं कवि नहीं हूँ”

अंततः !!
धड़कते साँसो व
लरजते अहसासों के साथ
करता हूँ मैं घोषणा
“मैं कवि नहीं हूँ”

कहा न – मैं कवि नहीं हूँ” !! 
 
 

Friday, March 2, 2012

शेर सुनाऊं...



















कब और कैसे शेर सुनाऊं!!


हो जाये भोर, छिटके हरीतिमा

...तो शेर सुनाऊं!!

गरम चाय का कप

सुबह सुबह जबरदस्ती उठाना...

तो कैसे शेर सुनाऊं!!

बच्चो कि तैयारी

प्यारी की फुहारी..

तब शेर कैसे सुनाऊं!!

टूथ ब्रश, सेविंग ब्रश, जूते का ब्रश

सबको है जल्दी...

कैसे शेर सुनाऊं!!

आफिस के लिए हो रहा लेट

करना है नाश्ता...

कैसे शेर सुनाऊं!!

सामने पड़ी है फाइलें

काम का बोझ

किस तरह शेर सुनाऊं !!

दिमाग में चल रहे हैं

छत्तीस काम

कहाँ से शेर लाऊं !!

हो गयी शाम

पहुंचे घर

बच्चो की फरमाइश

दब गयी शेर...

अब शेर कैसे सुनाऊं!!

सब्जी, दूध, राशन

पर्स में पैसे

आमदनी अट्ठन्नी

खर्चा रुपैया

शेर हो गया ग़ुम.

कैसे शेर सुनाऊं !!

हो गयी रात

प्रिये के बंधन में

आने लगी नींद..

खिलने लगे खबाब

ऐ!!!

कानो में प्यार के बोल

क्या? प्यार से शेर बुदबुदाऊं........!!!!