किसी एक चांदनी रात में
केदारनाथ सिंह के प्रेम से लवरेज शब्दों को
याद करते हुए मैंने भी,
केदारनाथ सिंह के प्रेम से लवरेज शब्दों को
याद करते हुए मैंने भी,
उसके हाथ को
अपने हाथ में लेते हुए सोचा
दुनिया को इस ख़ास हाथ की तरह
गर्म और सुंदर होना चाहिए
अपने हाथ में लेते हुए सोचा
दुनिया को इस ख़ास हाथ की तरह
गर्म और सुंदर होना चाहिए
पर सोच हाथों से होते हुए
रुकी उसके ठुड्डी पर
और फिर अटकी
उसके रहस्य से गहराते गालों के डिंपल पर
तत्क्षण वो मुस्काई
मैंने भी कह ही दिया
रुकी उसके ठुड्डी पर
और फिर अटकी
उसके रहस्य से गहराते गालों के डिंपल पर
तत्क्षण वो मुस्काई
मैंने भी कह ही दिया
दुनिया क्यों नहीं, इस तरह मुस्कुरा सकती कि
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
कहते हुए झाँकता चला गया
फिर उसकी आँखों में
वो बेपनाह गहराई वाली नजरों में
डूबते उतरते, महसूस पाया मैं
उन प्रेमसिक्त आंसुओं में नहीं था नमक
थी तो सिर्फ़ गंगा की पाकीज़गी
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
कहते हुए झाँकता चला गया
फिर उसकी आँखों में
वो बेपनाह गहराई वाली नजरों में
डूबते उतरते, महसूस पाया मैं
उन प्रेमसिक्त आंसुओं में नहीं था नमक
थी तो सिर्फ़ गंगा की पाकीज़गी
क्या दुनिया गंगा सी पवित्र नहीं हो सकती
चलो नहीं हो सकती तो क्या
उसकी आँखों में चमकती एक बूँद जो
पलकों से बस गिरने को थी,
और फिर आ गिरी मेरी उंगली पर
मैंने उस ऊँगली को तिरछी कर
उसमे से झांकते हुए उसको ही देखा
चलो नहीं हो सकती तो क्या
उसकी आँखों में चमकती एक बूँद जो
पलकों से बस गिरने को थी,
और फिर आ गिरी मेरी उंगली पर
मैंने उस ऊँगली को तिरछी कर
उसमे से झांकते हुए उसको ही देखा
था एक प्रिज्मीय अनुभव
दुनिया सिमट चुकी थी
सतरंगे अहसास से इतर
एक चमकती शख़्सियत के रूप में, मेरे सामने
दुनिया सिमट चुकी थी
सतरंगे अहसास से इतर
एक चमकती शख़्सियत के रूप में, मेरे सामने
फिर बुदबुदाते हुए हौले से बोला
दुनिया तुम इसके जैसी बनो
मेरी दुनिया ने भी खुश होकर
मेरे बित्ते भर माथे पर
बस ले ही लिया
'एक बोसा', सिर्फ एक।
दुनिया तुम इसके जैसी बनो
मेरी दुनिया ने भी खुश होकर
मेरे बित्ते भर माथे पर
बस ले ही लिया
'एक बोसा', सिर्फ एक।
~मुकेश~
10 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-03-2019) को "नारी दुर्गा रूप" (चर्चा अंक-3268) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सार्थक रचना
good work keep it up iAMHJA
बढ़िया
सुबह 4 बजे उठकर दिनचर्या में ढल जाता हूं
यारों तभी तो में फौजी कहलाता हूं।
पूरी कविता पढ़ने के लिए क्लिक करे-Paathsala24: तभी तो फौजी कहलाता हूँ। https://paathsaala24.blogspot.com/2019/03/blog-post.html?spref=tw
शानदार श्रीमानJ
Thank you for sharing this article it is very helpful to us but I want to know how to make an American eagle credit card payment
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