विंड चाइम की घंटियों सी
किचन से आती
तुम्हारी खनकती आवाज का जादू
साथ ही, तुम्हारा बनाया
ज्यादा दूध और
कम चाय पत्ती वाली चाय का
बेवजह का शुरुर !!
सर चढ़ कर जब बोलता है !
तो बंद आँखों में तैरने लगते हैं
कविताओं के खिलखिलाते शव्द
बेशक लिख न पाऊं कविता !!
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कल काफी बनाना :-)
दैनिक जागरण में प्रकाशित समीक्षा |
22 comments:
wah,baht achhe...badhai.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-10-2015) को "तलाश आम आदमी की" (चर्चा अंक-2117) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह..बहुत सुन्दर..
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
उम्दा रचना
बहुत सुंदर ।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 05 अक्टूबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
अति सुंदर....
अति सुंदर...
बहुत सुन्दर।
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