अर्ध-निर्मित घर
और उसमे रहने वाले लोग
प्लास्टर, रंग रोगन व साज सज्जा की
बाट जोहता अधूरा घर
ठीक वैसे ही जैसे
उसको बनवाने वाला शख्स
उम्र गुजर चुकने के बाद भी
नही मिला उसे वो स्तर,
वो तकदीर
जिसकी थी उम्मीद,
उस बौद्धिक मेहनतकश को ,
पर रही उम्मीदें बरकरार, इन्टैक्ट
उस ढीले हो चुके किवाड़ की तरह
जो है बेअसर, लग चुकने के बाद भी
अर्ध निर्मित घर की प्राइवेसी को
समेटने में
फिर भी वो ढीला ढाला किवाड़
हर बार चर्र की प्रतिध्वनि के साथ
खुलता बंद होता
याद दिलाता रहता है,
कि एक बार है जरूरी रीकन्स्ट्रकशन का
शायद, जल्द ही
हो पाए प्लास्टर विथ प्लास्टर ऑफ़ पेरिस
एंड वाइट सीमेंट !
फिर लगेगा जरुर रंग व पेंट
साथ में, मेरा वाला ग्रीन !
शायद जल्द ही
मिल पाए वो सब कुछ
हर दिन करता है वो
भगवन की मिन्नतें -
पैसा भगवान् तो नही
पर उसके बाद है सब कुछ !
अपेक्षाओं की है प्रतीक्षा
क्योंकि उस अर्धनिर्मित घर की
ढिबरी की लौ में
पढ़ने वाला जोड़ेगा नया सीमेंट
क्योंकि
दसवीं में वो पा चुका 96 परसेंट !
उम्मीदें सुकून देती हैं, और
अर्ध निर्मित घर की नींव को
बनाती हैं अम्बर सरिया सा मजबूत
फिर
आशाएँ जीने के लिए
विटामिन बी काम्प्लेक्स की गोलियां ही तो हैं !
याद रखना
हर अधूरा बेशक नहीं होता पूरा
पर नहीं होता बुरा
~मुकेश~
8 comments:
बहुत बढ़िया कविता
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20 - 08 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2073 में दिया जाएगा
धन्यवाद
उम्मीदें बरकरार --इस छलावे के बगैर भी कुछ नहीं-- सार्थक लिखे हो.
उम्मीदें सुकून देती है ,इरादों को मजबूत बनाती है
बेहतरीन कविता !
सुंदर, सटीक और सार्थक रचना
उत्कृष्ट प्रस्तुति
आशा और उम्मीद बनी रहनी चाहिए. सुंदर प्रस्तुति.
अधूरेपन में सच्चाई होती है
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