जिंदगी की राहें

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Thursday, July 23, 2015

भूतनी

from
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एक बूँद जिंदगी के
कह कर डाल देते हैं
बच्चे के मुंह में, पोलियो ड्राप
बेचारा नन्हा कसैले से स्वाद के साथ
जी उठता है ताजिंदगी के लिए !!

कुछ ऐसा ही
एक कश लिया था
'रेड एंड वाइट' के
बिना फ़िल्टर वाले सिगरेट का
बहुत अन्दर तक का
यह सोच कर कि
एक कश उसके नाम का !

और, फिर
जैसे ही उड़ाया, होंठ गोल कर के
धुएं का छल्ला
धूमकेतु सी "तुम"
बहती नजर आयी, दूर तक
एक बार तो सोचा
ये विक्रम वाली बेताल कैसे
बन गयी !! 'तुम'
धत !! भूतनी कही की!!

कुछ भी, कहीं भी, कैसे भी
उड़ कर पहुँच जाती हो तुम !!
भूतनी! भूतनी !! भूतनी !!
चिढ़ती रहो ........
मेरी तो कविता बन गयी न !!



7 comments:

Samta sahay said...

बेहतरीन कल्पना।
बहुत अच्छी कविता !

abhi said...

:) :)
Lovely

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25-07-2015) को "भोर हो गई ..." {चर्चा अंक-2047} पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Manoj Kumar said...

गजब की कल्पना है आपकी !
सिगरेट के कश के धुएं में भी भूतनी नज़र आ गयी

Anamikaghatak said...

behatrin prastuti

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत खूब !

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

सहज में ही अच्छी कविता बन गई .वाह..