जब भी मैं उन्मुक्त हो कर
खुशी से झूमकर
बिन सोचे समझे
खिल खिला उठता
तो वो कहती
बड़े बुरे दिखते हो आप
क्योंकि आगे वाले दो दाँतो के बीच का
खुला पट
दिख ही जाता है, दूर से !!
जब भी दिल से
अन्तर्मन से
बहुत सोच समझ कर
उकेरता कागज पर
तो वो कहती
बड़े बुरे दिखते हो आप
क्योंकि
कलम की सोच व
सारी भाव भंगिमाएँ
चेहरे को बुरी बनाती है
दिख जाता है दूर से ....
तभी तो
मैंने
बिना सोचे हँसना
व
सोच समझ कर लिखना
छोड़ ही दिया है
ठीक ही किया न !!
18 comments:
bilkul thik kiya,jo antar ko chhu jaye bat to manni hi chahiye....behud umda bhav ko ukere ho....bas wah...
हम जैसे हैं, वैसे ही व्यक्त रहें।
पूर्णता का अनुभव कराती सुंदर कविता...
badlaav bahut zaroori hota hai Mukesh ji ...n kuch badlaav behad ache hote hain zindagi ko saral karne ke liye :)
उन्मुक्त खिलखिलाहट और अंतर्मन से उपजे भाव अनुपम होते है... प्राकृतिक स्वरुप ही सबसे सुन्दर है...
वाह। कभी कभी किसी के कहे कुछ शब्द जीवन ही बदलकर रख देते हैं...बहुत ही सुंदर रचना। सादगी लिए...
किसी के लिए कभी भी खुद को नहीं बदलना चाहिए. जो जैसा है, वैसे ही अच्छा लगता है. एक सुंदर कविता !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (10-03-2014) को आज की अभिव्यक्ति; चर्चा मंच 1547 पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
किसी के कहने से क्या होता है .. जो है वाही तो सच है ... अच्छे से व्यक्त किया है आपने ..
बहुत सुंदर ...
bahut sunder
ठीक तो है - हम जैसे हैंं वैसे हैंं,तुम अपनी जानो !
कोई कुछ भी कहे हँसते रहो :)
मस्त रहें , खुश रहें !!
ठीक किया , बिना प्रयास स्वाभाविकता बनी रहती है !
तुम्हारे हँसने की चाहे जो वजह हो .....पर तुम हँसते हुए ही अच्छे लगते हो मुकेश
तुम्हारे हँसने की चाहे जो वजह हो .....पर तुम हँसते हुए ही अच्छे लगते हो मुकेश
तुम्हारे हँसने की चाहे जो वजह हो .....पर तुम हँसते हुए ही अच्छे लगते हो मुकेश
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