मनी प्लांट की लताएँ
हरी भरी होकर बढ़ गई थी
उली पड़ रही थी गमले से बाहर
तोड़ रही थी सीमाएं
शायद पौधा अपने सपनों मे मस्त था
चमचमाए हरे रंगे में लचक रहा था
ढूंढ रहा था उसका लचीला तना
आगे बढ़ने का कोई जुगाड़
मिल जाये कोई अवलंब तो ऊपर उठ जाए
या मिल जाए कोई दीवार तो उस पर छा जाए
पर तभी मैंने हाथ में कटर लेकर
छांट दी उसकी तरुणाई
गिर पड़ी कुछ लंबी लताएँ
जमीन पर, निढाल होकर
ऐसे लगा मानों, हरा रक्त बह रहा हो
कटी लताएँ, थी थोड़ी उदास
परंतु थी तैयार, अस्तित्व विस्तार के लिए
अपने हिस्से की नई जमीन पाने के लिए
जीवनी शक्ति का हरा रंग वो ही था शायद
गमले की शेष मनी प्लांट
थे उद्धत अशेष होने के लिए
सही ही तो है, जिंदगी जीने की जिजीविषा
आखिर जीना इतना कठिन भी नहीं ......।
.. तमसो मा ज्योतिर्गमय ।।
~मुकेश~
7 comments:
Really awesome words ..Mukesh ji jeena rehna itna kathin nhi par zindagi ko jeena sach mein kathin hi hai ....
बहुत सुंदर है मनी प्लांट की कहानी..जीना सिखाती हुई।
very nice expression .
jine ki jijivisha ko puri tarah puri karti hai...Maniplant...kitni lachili..kitna samayojan...
बढ़िया रचना , मुकेश सर धन्यवाद व स्वागत है मेरे लिंक पे -
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~ ज़िन्दगी मेरे साथ - बोलो बिंदास ! ~ ( एक ऐसा ब्लॉग -जो जिंदगी से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताता है )
जीने कि आशा लिए ... मनी प्लांट .. बहुत खूब ...
सच कहा..जीना इतना कठिन भी नहीं !
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