दिवाली के दुसरे दिन प्रदूषित आसमान |
दिवाली के दूसरे दिन की सुबह
अजीब सी निरुत्साहित करने वाली सुबह
चमकती रात के बाद बुझे-बुझे सूर्य के साथ
कुछ नहीं बुझी लड़ियों की दिखती ख़ामोशी
बुझ चुके दीपक, और पिघली मोमबत्तियां
बिना चमक के हो चुकी होती है सुबह !!
चारो और फैले पटाखों के अवशिष्ट
रद्दी, चिन्दी चिन्दी हुए कागज़,
मिठाई के खाली डब्बे
काले कार्बन से बनते बिगड़ते सांप
जो किसी बच्चे ने देर रात जला कर
फैलाया था प्रदूषण का भभका
लग रहा था डंसेगा, फैला रखा था फन !
ऊबता हुआ दिल, थका हुआ मन
मुंदी मुंदी आँखों से, जलते प्रदूषण के आसमान में
ऊँघते चेहरे के साथ झांकता बालकनी से मैं
देखता दीवाली के दूसरे दिन अजीब सी सुबह !
कुछ छोटे छोटे बच्चे
ढूंढ रहे थे कूड़े में
तभी इस उदास सुबह में दिखा मुझे
एक चंचल प्यारी सी मुस्कराहट
चहक कर चिल्लाया, अपने साथ वाले को उसने बुलाया
देख भाई - बम !
नहीं है इसमें पलीता, पर फूटने से बचा रह गया न !
सच में कुछ खुशियाँ बिना पलीते के पटाखे सी
मुस्कराहट भरती है
हाँ फिर जब वो बच्चा उसको फोड़ने की जुगत लगाएगा
तो वो हो जाएगी फुस्स !!
माँ लक्ष्मी को भी शायद नहीं लगता मनभावन
तभी तो ऐसे बच्चे के बीने-चुने हुए पटाखे भी
नहीं करते आवाज !!
काश बेशक दिवाली के दिन नहीं बिखरी खुशियाँ
हर जगह
पर काश !!
कुछ तो फैले ख़ुशी, हर नन्हे के मन में
अमीरी गरीबी से इतर !!
माँ !! या देवी सर्व भूतेषु !!
बस पटाखे की आवाज गौण कर, सिर्फ खुशियाँ की आवाजें भर दो
हर नन्हों के मन !!
इतनी सी उम्मीद !!
दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल 2015 के लिए चयनित मेरी कविता |
5 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 23 नवम्बबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत सुन्दर
जी बिलकुल सही बात लिखी है आपने। दिवाली के दूसरे दिन ऐसा ही मंजर होता है । बहुत सुंदर ।
बहुत ख़ूब
बिलकुल सही बात लिखी है
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