( दिल्ली एअरपोर्ट से ली गयी फोटो ) |
ऐसे लगता है जैसे
मेट्रो का दरवाजा
सामने खुलने वाला हो
या मेट्रो क्यों
नए वाले लाल डीटीसी का दरवाजा ही
दरवाजा के खुलते ही
सामने खड़े पथिक के सामने
हलकी से मनचली ए.सी. की हवा
खूब सारी गर्मी के बाद झुमा देती है जैसे !!
ये प्रेम भी न
अजीब है कुछ
ऐसे सोचो जैसे
खूब सारी प्यास लगी हो, और
मुंह में लिया हो
वो सबसे सस्ती वाली लोली पॉप
या फिर उल्टा ही सोच लो, क्या जाता है
पेट में गैस
और जस्ट पिया हो
'इनो' का एक ग्लास !!
ये प्रेम ही तो है
जब चौबीस घंटे का व्रत
और फिर एक ग्लास शरबत
खूब सारी चीनी वाली .........
शायद मिल जाता है प्रेम
प्रेम ही है न ....... !!
__________________
प्रेम ही होगा ...........
15 comments:
बहुत बढ़िया तुलना
bahut sundar , prem ke rang hai anek ,
सुंदर लेखन , मुकेश भाई धन्यवाद !
इससे पहले की पोस्ट जो आपने प्रकाशित की थी , उसकी प्रस्तुति का सूत्र ये है , कृपया देख लें -
"जिंदगी के राहों में उम्र डगर" { I.A.S.I.H - पोस्ट्स न्यूज़ - अंक ११ }
धन्यवाद !
Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
sundar
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-08-2014) को "गणपति वन्दन" (चर्चा मंच 1721) पर भी होगी।
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श्रीगणेश चतुर्थी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
एक अलग सी रचना
वाह ..बहुत खूब ...प्रेम की चाशनी से सराबोर
वाह सुन्दर ढंग से परिभाषित प्रेम |
प्रेम ...ताउम्र जिया जाने वाला सच!
प्रेम का अध्य्यन आपके नजरिये से तो बहुत ही मजेदार हो गया...:)
यानि प्रेम सुकून है....
bahut sunder prem ko bhinn tareeke se prastut kiya.....
प्रेममय...बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति...बधाई
sundar...prem ke rang dikhlati rachna
सुन्दर ढंग से परिभाषित प्रेम |
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