जिंदगी की राहें

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Wednesday, June 29, 2011

कुछ जिंदगियाँ..










पिछले कुछ दिनों से मेरी दिनचर्या कुछ ऐसी हो गयी की दिमाग में काव्य रचना की और ध्यान ही नहीं एकत्रित हो पा रहा है... ....बहुत दिमाग लगाया, पर कुछ बन ही नहीं पा रहा.....अंततः!  ये कविता बन पड़ी......आपके सामने रख रहा हूँ....! 


वो
जिसने लिए थे फेरे
सात जन्म तक साथ निभाने का
पर उन वादों-वचनों को कब का 
रंगीन प्यालो में घोल कर पी चूका था..
और अंततः कुछ न बचा तो
खुद भी उसी बोतल में घुल गया..
था अब दिवार में लटका...
सूखे माले के साथ..

रह गयी
एक खुबसूरत छोटी से बेटी की माँ
जो हो चुकी थी विधवा..
दुग्ध धवल रंग रूप 
छरहरी देह यष्टि ....
नौकरी पाने के लिए ये गुण थे वरदान
पर फिर अभिशाप बन कर उभर गयी थी
जब लोगों की आँखों से बेधती..नजर चुभ जाती थी...

समय का पहिया पंख लगा कर उड़ा..
दिन बीते, बीती रातें.........
खुद से भी जायदा खुबसूरत
बेटी हो गयी थी जवान..
और फिर बहूत खोज ढूंढ़ कर उसने 
किया विदा अपनी दुनिया को..
एक सजीले नौजवान के साथ
कितनी खुश थी...
आखिर उसने संवारा था खुद का संसार....

पर वो ऊपर वाला ..
उसे तो था कुछ और मंजूर
दुसरे ही दिन...
दरवाजे पर दहाड़ मारती थी खड़ी वो बेटी..
साडी के लिबास में , पर अस्त व्यस्त...
रो भी तो नहीं पा रही थी वो...
हिचकियों के साथ....
मम्मा !! किस से ब्याह दिया..???
वो तो .........? उसके पास तो........?
क्या ?? क्या ?? हे राम!!!!
फिर से लूट गयी दुनिया, फिर से वही काली रातें..
जिसको न चाह कर भी होगा अपनाना..

क्यूं? कभी कभी कुछ जिंदगियाँ..
ता-जिंदगी सिर्फ लुटती रहती है..
जितना भी चाहो, खुशियाँ समेटना 
वो उपरवाला अंत-हीन परीक्षा 
का सिल-सिला रखना चाहता है जारी...
आखिर कब तक?
क्या मरने के बाद भी..................??


58 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहतरीन!

Shalini kaushik said...

sachchai bayan karti abhivyakti.aur adhiktar sach kadwa hi hota hai.

अरुण चन्द्र रॉय said...

आपकी कविता तो रुला गई आज.... मर्मस्पर्शी कविता...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

dhanywad yashwant, shalini...!
shukriya arun jee.........!

सदा said...

भावमय करते शब्‍दों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

आनंद said...

waaaaaaaaaah bhai kya kahoon behtareen kavita...bhia mera bahut bhavuk hai aur main bhi.
ab hansayega kaun paagal jaldi se kuchh aur likho.

ρяєєтii said...

Behtarin rachna...!

प्रवीण पाण्डेय said...

हृदय तरल कर गयी आपकी कविता।

Kailash Sharma said...

क्यूं? कभी कभी कुछ जिंदगियाँ..
ता-जिंदगी सिर्फ लुटती रहती है..

बहुत मार्मिक प्रस्तुति...अंतस को छू गयी..बहुत सुन्दर

Udan Tashtari said...

उतर गई कविता...द्रवित करती हुई...

नीरज गोस्वामी said...

चित्र और रचना दोनों उत्कृष्ट

नीरज

शिखा कौशिक said...

Mkesh ji -sateek bat kahi hai .maine bhi dekha hai ki kuchh log jindgi bhar pareeksha hi dete rahte hain .prabhu itna kathhor kaise ho jata hai samajh nahi aata .

anilanjana said...

jeevan ki ek aisi sacchayi..jo har dusri ghadi ghati ho rahi hai.......likhi aur padhi ja rahi hai..kaash kaash....na aisa kabhi ghatit ho aur na..likhna padhe

vandana gupta said...

ये तो पहले भी पढी है और कमेंट भी दिया था कहाँ गया?
कुछ ज़िन्दगियो की किस्मत मे सिर्फ़ अंधेरे ही लिखे होते है शायद्…………

Anonymous said...

मार्मिक प्रस्तुति

shikha varshney said...

उफ़ क्या लिख दिया है आज ये...बेहद मार्मिक.कुछ नहीं लिख पाउंगी इसपर.

मीनाक्षी said...

मर्मस्पर्शी..जाने कितनी ज़िन्दगियाँ ऐसे ही दर्द के समुन्दर में डूबती हैं हर रोज़... पल पल...

रश्मि प्रभा... said...

क्यूं? कभी कभी कुछ जिंदगियाँ..
ता-जिंदगी सिर्फ लुटती रहती है..
जितना भी चाहो, खुशियाँ समेटना
वो उपरवाला अंत-हीन परीक्षा
का सिल-सिला रखना चाहता है जारी...
आखिर कब तक?
क्या मरने के बाद भी..................??
is anthin pariksha ke aage buddhi bhi sahami si ho jati hai

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

इस कविता ने कुछ कहने के काबिल नहीं छोड़ा.. दिल को छू गयी यह कविता!!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

क्यूं? कभी कभी कुछ जिंदगियाँ..
ता-जिंदगी सिर्फ लुटती रहती है..
जितना भी चाहो, खुशियाँ समेटना
वो उपरवाला अंत-हीन परीक्षा
का सिल-सिला रखना चाहता है जारी...
आखिर कब तक?
क्या मरने के बाद भी..................??

Bemisal panktiyan.... Prabhavit karati rachna

anshumala said...

जब ऊपर वाले के बजाये खुद पर भरोसा किया जाता

बुरे समय का अपनी नियति न मान उससे लड़ा जाता

तो न लुटती कई जिंदगिया

kshama said...

क्यूं? कभी कभी कुछ जिंदगियाँ..
ता-जिंदगी सिर्फ लुटती रहती है..
जितना भी चाहो, खुशियाँ समेटना
वो उपरवाला अंत-हीन परीक्षा
का सिल-सिला रखना चाहता है जारी...
आखिर कब तक?
क्या मरने के बाद भी..................??
Dil bhar aaya...

दर्शन कौर धनोय said...

कुछ जिंदगियां यू ही गलने सड़ने के लिए होती हैं ..उनमे कितना भी रस डालो पर नियति को वो मंजूर नही होती

मुकेश कुमार सिन्हा said...

shukriya Sada
@anand bhaiya...mahine me ek likha hai...ab agle mahine:)
@preeti, praveen jee...thanx

निवेदिता श्रीवास्तव said...

मन कुछ ज्यादा ही भारी कर गयी आपकी रचना ....

डॉ. जेन्नी शबनम said...

सच कहा कभी कभी यूँ लगता जैसे किसी किसी की तकदीर में कभी ख़ुशी होती हिन् नहीं, न जीते जी न मरने के बाद. बहुत उम्दा लेखन, बधाई मुकेश.

Anonymous said...

kabhi blog pe comment post kar diya karटी हूँ.
१.दिल को छू गई आपकी रचना
२.बहुत खूब
३.वाह वाह लिखते रहो
४.बेहतरीन
५ भावमय करते शब्‍दों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।
ओके?या और लिखू? दुष्ट! बज़ पर देखो मैंने अपने व्यूज़ दिए हैं.
तुमने लिखा.मैंने आँखों से देखा.साक्षी रही इन सबकी.नही आती कुछ की दुनिया में खुशियाँ.दुखों के साथ जन्म लेते हैं और दुखों के साथ ही मर जाते हैं,चले जाते हैं तुम्हारी इस दुनिया से.शायद वहाँ चैन मिलता हो????शायद नही.
सत्य कथाओं की तरह सत्य कविता है तुम्हारी ये रचना.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

kailash sir, sameer bhaiya...dhanyawad..!!
neeraj sir...shukriya

प्रेम सरोवर said...

आपकी कविता मन को दोलायमान सी कर गयी।कविता की प्रस्तुति बहुत ही सुंदर लगी। अवकाश के छड़ों में समय मिले तो कभी-कभी मेरे पोस्ट पर भी आया करो, भाई साहब।
धन्यवाद।

Alpana Verma said...

मर्मस्पर्शी.
जीवन की क्लिष्टता -अंतहीन परीक्षा

वाणी गीत said...

कुछ जिंदगियां दर्द में ही जीती मरती हैं ...
मार्मिक !

Dr.Bhawna Kunwar said...

Bahut marmsparshi rachna hai....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ज़िंदगी के सत्य को कहती बहुत मार्मिक प्रस्तुति ...


सूखे माले के साथ....इस पंक्ति को यदि यूँ लिखा जाये तो --

सूखी माला के साथ

Anju (Anu) Chaudhary said...

मुकेश जी ....जिस दिन आपने ये कविता पढने को दी थी
मै तो उस दिन भी निशब्द थी ..और आज भी ये ही कहूँगी की
आपकी कविता बहुत हट कर होती है ...सोच बेहतर ...और दर्द के करीब
बहुत खूब

श्यामल सुमन said...

मार्मिक कथ्य - हाँ ऐसा भी होता है.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/

एस एम् मासूम said...

एक बेहतरीन पेशकश

राजेश उत्‍साही said...

कविता जहां से शुरू होती है वहीं खत्‍म हो जाती है। बात तो तब है जब वह उससे आगे बढ़कर कुछ कहे।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Thanx Shikha...
Anjana di...mujhe pata hai, ye rachna aur behtar honi chahiye thi...:)
@vandana...maine to copy paste kiya nahi, pata nahi kahan aapne comment kar diya tha...

मुकेश कुमार सिन्हा said...

@rakesh jee...thaqnx!!
@shikha....:D waise bhi jayda kuchh nahi likha kabhi tumne...hamare comment me kabhi:)
@meenakshi jee, rashmi di...dhanyawad

Anupama Tripathi said...

मुकेश जी आपने आमंत्रण दिया और मैं यहाँ हूँ ....
बहुत मर्मस्पर्शी है आपकी रचना ..
सच में अंतहीन दुःख ही है यह ....

दिगम्बर नासवा said...

मार्मिक ... बहुत ही संवेदनशील ... भावुक कर जाती है ये रचना ... मर्म्स्पर्शीय ..

डॉ रजनी मल्होत्रा नैय्यर (लारा) said...

मर्मस्पर्शी रचना ..........भावमय प्रस्‍तुति ।

Anonymous said...

भावमय करते शब्‍दों के साथ सशक्‍त रचना ।

कविता रावत said...

bahut badiya chitra ka saath marmsparshi ranchna prastuti ke liye dhanyavaad!

Suman said...

मेरी कवितासे अगर बच्चोंके चेहरेपर मुस्कान
आती है तो इससे जादा खुशीकी और क्या बात
हो सकती है मेरे लिये ! आभार !

achhi rachna ....

Minakshi Pant said...

बहुत खुबसूरत शब्दों से सजी रचना जिसमें नारी के दर्द , तड़प को बखूबी महसूस किया जा सकता है कभी २ लगता है ये तकलीफ नारी के हिस्से तब तक रहेगी जब तक वो अपने आत्मबल को न बनाएगी अगर वो ये ठान ले की ये मेरा घर है और इसमें मेरा भी उतना ही हक है जितना की दूसरों का तो इस का डट कर सामना कर सकती है बस उसे हिम्मत से काम लेने की बात है फिर उसे उतना दर्द सहने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी | बहुत खुबसूरत रचना दोस्त |

Unknown said...

क्यूं? कभी कभी कुछ जिंदगियाँ..
ता-जिंदगी सिर्फ लुटती रहती है..
जितना भी चाहो, खुशियाँ समेटना
वो उपरवाला अंत-हीन परीक्षा
का सिल-सिला रखना चाहता है जारी...
आखिर कब तक?
क्या मरने के बाद भी..................??

मर्मस्पर्शी ! बेहतरीन!

Amrita Tanmay said...

हमारे आस-पास ऐसी घटनाएँ देखने को मिल ही जाती है.अच्छा चित्रण किया है.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

@धन्यवाद् शिखा,
@हाँ अंजना दी...हम चाहते हैं, ऐसा न हो ...पर घटित होता रहता है..
@वंदना जी , कहाँ पढ़ लिया आपने..
@बड़े भैया (सलिल), डॉ. मोनिका शुक्रिया.......
@अंशुमाला जी, क्षमा जी., दर्शन जी...धन्यवाद..
@निवेदिता जी, जेन्नी दी,...शुक्रिया..
@इंदु दी..आप भी न...कहीं भी मौका नहीं छोडती....:)

मुकेश कुमार सिन्हा said...

@प्यारे से शब्द के लिए धन्यवाद् प्रेम सरोवर जी.
@अल्पना जी, , वाणी दी, डॉ. भावना...शुक्रिया..
@संगीता दी, अनु, स्यामल सुमन...मासूम सर...धन्यवाद्
@राजेश भैया..बस कोशिश जारी है...:)

Pratik Maheshwari said...

हाँ यह भी सच है कि कुछ की झोली में सिर्फ दुःख-दर्द ही होता है.. शायद पिछले जनम का भोग.. शायद..

परवरिश पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार

ZEAL said...

bahut badhiya mukesh ji.

Urmi said...

बहुत मर्मस्पर्शी रचना है! शानदार और लाजवाब प्रस्तुती! बेहद पसंद आया!

Udan Tashtari said...

लिखना क्यूं रुका है? सब ठीक तो है?

मुकेश कुमार सिन्हा said...

dhanyawad anumpama jee...!
digambar sir aapki baaten khush kar jaati hain..
thanx Rajni, Yashwant...Nutan, Kavita jee...
shukriya suman jee,
bahut sach kaha tumne meenakshi...mere baato se sahmat ho na aap!
shukhirya anil bhai, amrita jee,

ज्योति सिंह said...

क्यूं? कभी कभी कुछ जिंदगियाँ..
ता-जिंदगी सिर्फ लुटती रहती है..
जितना भी चाहो, खुशियाँ समेटना
वो उपरवाला अंत-हीन परीक्षा
का सिल-सिला रखना चाहता है जारी...
आखिर कब तक?
क्या मरने के बाद भी..................??
padhkar aankhe bhar aai meri chhoti bahan ka dard ubhar aaya .dard bhari ,kuchh sawal ke jawab to vidhata hi jaane .

Dorothy said...

दिल की गहराईयों को छूने वाली बेहद मर्मस्पर्शी रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.

मुकेश कुमार सिन्हा said...

@प्रतिक भाई धन्यवाद्......
@यशवंत जी....बहुत ख़ुशी हुई, आपने मेरे कविता को स्थान दिया
@डॉ. दिव्या., बबली जी, ..शुक्रिया..
@समीर भैया....बस थोड़ा समय की कमी हो गयी है..
@ज्योति जी आपके अनमोल बातें, अच्छी लगी..
@शुक्रिया डोरोथी.....