मेरे कमरे में रखी
गोदरेज के अलमारी में
लगा आदमकद "आइना"
जब भी देखता हूँ अपना अक्स
खुल जाती है पोल
न चाहकर भी चेहरे पर
दिख जाते हैं अशुद्ध विचार
हो ही जाता है सच का सामना...
लगा आदमकद "आइना"
जब भी देखता हूँ अपना अक्स
खुल जाती है पोल
न चाहकर भी चेहरे पर
दिख जाते हैं अशुद्ध विचार
हो ही जाता है सच का सामना...
बहुत की कोशिश
मिटा पाऊं बुरी इच्छाएं
मन में रह पाए सत्य
और सुगन्धित विचार
ताकि चेहरा दिखे विशुद्ध
जब सामने हो चमकीला आइना...
मिटा पाऊं बुरी इच्छाएं
मन में रह पाए सत्य
और सुगन्धित विचार
ताकि चेहरा दिखे विशुद्ध
जब सामने हो चमकीला आइना...
पर बदल न पाया
अन्दर का विचार
अत्तः नहीं आने देता
मैं चेहरे पे भाव
ताकि वो दिखे निर्विकार
पहचान न पाए आइना...
आखिर क्यों आईने के कांच के
अन्दर की गयी कलई
खोल ही देती है मेरी कलई
अन्दर का विचार
अत्तः नहीं आने देता
मैं चेहरे पे भाव
ताकि वो दिखे निर्विकार
पहचान न पाए आइना...
आखिर क्यों आईने के कांच के
अन्दर की गयी कलई
खोल ही देती है मेरी कलई
ऐसा ही तो करती है नारियां
पर दर्पण तब नहीं पढ़ पाता
भावनाओ को छुपाता
उद्गारों को दबाता
नारी का स्याह चेहरा
परिपक्वता के रंग में रंगा
बेशक दिखा देता है
काला हुआ सफ़ेद बाल
हमेशा की तरह
जिसको कभी
महसूस भी नहीं कर पाता आइना
पर दर्पण तब नहीं पढ़ पाता
भावनाओ को छुपाता
उद्गारों को दबाता
नारी का स्याह चेहरा
परिपक्वता के रंग में रंगा
बेशक दिखा देता है
काला हुआ सफ़ेद बाल
हमेशा की तरह
जिसको कभी
महसूस भी नहीं कर पाता आइना
इसलिए हमने भी सोच लिया
या तो रहे शुद्ध विचार
या फिर चेहरा दिखे निर्विकार
जब रहे सामने
ये आदमकद आइना !!
या तो रहे शुद्ध विचार
या फिर चेहरा दिखे निर्विकार
जब रहे सामने
ये आदमकद आइना !!
80 comments:
मुकेश भाई आईने पर इतनी सुन्दर कविता पढने को नहीं मिली थी.. नए तरह का विचार लेके आप आये हैं आईने पर... यह कविता आपने काव्य प्रतिभा के व्यापक होने का संकेत है. शुभकामना सहित...
kaas ham bhi aayina ki tarah hote...Roy ji ke bato ka anusaran kare ...congratulation.
इसलिए हमने भी सोच लिया
या तो रहे शुद्ध विचार
या फिर चेहरा दिखे निर्विकार
जब रहे सामने
ये आदमकद आइना
....jitni taarif karun kam hai... soch kee vistrit seema ko baandh liya hai , waah
आईना दिखाता आईना!
आशीष
---
लम्हा!!!
बहुत सुन्दर रचना
इसीलिए अब हम आईने से बातें नहीं करते
कतराते हैं कि कहीं आईना हमें आईना न दिखा दे
निर्विकार ही रूप दिखाये आईना।
बेहतरीन पंक्तियाँ आईने पर.
बधाई आपको.
@ऐसा ही तो करती है नारियां
दर्पण भी नहीं पढ़ पाता
जानती है की अपनी इच्छाए बाहर निकाली तो भी वो पूरी न होगी और उनका दर्द और बढ़ जायेगा जीवन भर असंतुष्ट कहा जायेगा अच्छा है की कोई इच्छा ही बाहर न निकालो मार दो उन्हें अन्दर और दिखो हर समय खुश ताकि परिवार भी रहे हमेसा निश्चित उनके प्रति |
मुखड़ा क्या देखूं दर्पण में ? बहुत खूब भाई ..धीरे धीरे तुम्हारी लेखनी को नए आयाम मिलते जा रहे हैं कैनवास विस्तृत हो रहा है बधाई हो !
@अरुण जी पता नहीं क्यों आपके कमेन्ट दिल को छूटे हैं...........
@Shaw स्वागतम सर..:)
@ रश्मि दी...बस कोशिश जारी है..:)
@शुक्रिया आशीष...
@उस्ताद जी, आपने नंबर नही दिया..:D
इसलिए हमने भी सोच लिया
या तो रहे शुद्ध विचार
या फिर चेहरा दिखे निर्विकार
जब रहे सामने
ये आदमकद आइना
Badhiya vichaar..sundar kavita
मुकेश जी कहा था ना ये कविता एक मील का पत्थर है…………आईने के माध्यम से आपने सच मे आईना ही दिखा दिया………बेहद गहन और सूक्ष्म सोच का परिचायक है ये कविता्।
सच है, स्वयं को देखना बड़ा मुश्किल है !
मगर हम यही तो करना नही चाहते। सुन्दर कविता के लिये बधाई।
दर्पण झूठ न बोले, आपने तो आइना दिखा दिया .अच्छी अभिव्यक्ति, बधाई
सच है आइना झूठ नहीं बोलता पर जरूरी है उस पर हम धूल न जमने दें...
बहुत सुंदर
इसलिए हमने भी सोच लिया
या तो रहे शुद्ध विचार
या फिर चेहरा दिखे निर्विकार
जब रहे सामने
ये आदमकद आइना..
कमाल की रचना..बहुत ख़ूबसूरत आइना दिखाती हुई..
Waah! Aadamqad aaine se chhubhi len to 'man darpan' ka kya karen???
आईना दिखाता आईना! सुन्दर कविता के लिये बधाई।
इसलिए हमने भी सोच लिया
या तो रहे शुद्ध विचार
या फिर चेहरा दिखे निर्विकार
जब रहे सामने
ये आदमकद आइना
बहुत सुंदर ...सच में हकीकत का सामना करवाता है आइना.....
आलमारी पर लगा आइना तो केवल मूर्त रूप से चेहरा ही दिखाता है,चेहरे के भाव भी देखे जा सकते हैं,लेकिन मन के भाव,मन के विचार तो आराम से छुप जाते हैं...फिर वो इंसान नर हो या नारी..!!
और सफ़ेद बाल तो आज कल नर भी रंगते हैं...अकेले नारियां नहीं और चेहरे पुरुषों के भी स्याह होते हैं केवल नारियों के ही नहीं !!हाँ,मन के आईने मैं किसे अपना चेहरा कैसा दिखाई देता है....यह देखने वाले पर निर्भर करता है..कविता बहुत अच्छी है,बस इसे नर-नारी के फेरे से हटा दें!!
शुद्ध विचार और इक्षाओं के लिए शायद मन की ज़रुरत ज्यादा पड़ती है हमें..!!जिसे हम छुपाते फिरते है सबसे और कुछ हद तक खुद से भी.
क्योंकि वहां सब साफ़ दिखलाई देता है!!
"तोरा मन दर्पण कहलाये..........."
एक फ़िल्मी गाना याद आ रहा हे --
"दर्पण झूठ न बोले "
सुन्दर स्तुति --बधाई |
ati sundar rachna.
आपको महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें....
इसलिए हमने भी सोच लिया
या तो रहे शुद्ध विचार
या फिर चेहरा दिखे निर्विकार
जब रहे सामने
ये आदमकद आइना
Mukesh ji ab aap bahut aage nikal gaye hain...main aapko ab pakad nahi paayungi..:)
sach aap bahut pratibhavaan lekhak ho gaye hain.
bahut bahut shubhkaamnaayen.
इसलिए हमने भी सोच लिया
या तो रहे शुद्ध विचार
या फिर चेहरा दिखे निर्विकार
जब रहे सामने
ये आदमकद आइना
Mukesh ji ab aap bahut aage nikal gaye hain...main aapko ab pakad nahi paayungi..:)
sach aap bahut pratibhavaan lekhak ho gaye hain.
bahut bahut shubhkaamnaayen.
@ सत्यवचन प्रवीण जी
@धन्यवाद् शिखा, रश्मि रविजा जी..
@अंशुमाला जी, जिंदगी बदल रही है नारियों कि भी............:)
@बस आनंद भैया, ...........कोशिश लगातार जरी है..
@वंदना जी...आपके कमेंट्स सर आँखों पर..:)
@शुक्रिया ज्ञानचंद जी, निर्मला दी, सुनील सर...:)
@वीणा जी, बिलकुल सच...!
लगता है बहुत अच्छे इंसान हो, हार्दिक शुभकामनायें !
अलमारी और आईने के सहारे से अपनी बात को खूबसूरती से कहने का खूब अंदाज़ इसी अंदाज़ में हम भी एक शेर कहना चाहेंगे |
किसी एक चेहरे की तलाश में भटकती रहे ज़िन्दगी |
पर मिला नहीं ज़िन्दगी को अपनी पहचान का आईना ||
बहुत खुबसुरत रचना |
बहुत अच्छी कविता है आइना खुद का चेहरा दिखा देता है आइना काश दिल की बात बता पाता ये आइना तो कितना अच्छा होता मुकेश जी
बहुत अच्छी कविता है आइना खुद का चेहरा दिखा देता है आइना काश दिल की बात बता पाता ये आइना तो कितना अच्छा होता मुकेश जी
मुकेशजी....
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!!
आपकी साफगोई की दाद देती हूँ....
शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो इतनी उदारता दिखाए.....!!मेरी बात से ये मत सोचियेगा की मैं किसी वर्ग विशेष का पक्ष ले रही हूँ....
या फिर आप पुरुष हैं और एक नारी होने के नाते आपका विरोध करना मेरा अधिकार है...
बस मैंने अपने विचार आपके समक्ष रखे थे और उसे किस तरह लेना है..
ये पूरी तरह से आपके हाथ में था..!!
एक मित्र होने के नाते इसे अनुरोध ही कह सकती हूँ और वही किया भी है..
एक मित्र की तरह ही आपने मेरा मान रखा जो इतनी सहृदयता से मेरी भावनाओं को समझा....!!यहाँ मैं इसे आलोचना नहीं कह सकती....!!
आपको मेरा बार-बार धन्यवाद....!!
@धन्यवाद् कैलाश सर, क्षमा , डॉ. मोनिका व Patiali the village...:)
@पूनम जी, वस्तुतः आपकी बात पुर्णतः सच लगी मुझे, और मेरे मन में जो था, वो बताने के लिए आपके ब्लॉग पे जाना पड़ा .....................) मुझे ख़ुशी है आपको जो सच लगा, आपने बताया.....
@दर्शन जी, हरीश जी ...शुक्रिया...:)
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
वाह कविता यूं अल्मारी के शीशे से भी शुरू हो सकती है, कभी सोचा न था
आओ सारे पहन लें आईने
सारे देखेंगे अपना ही चेहरा
रूह वैसे भी किसने देखी है!!
.
मुकेश भाई, बहुत बेहतर ढ़ंग से एक आईने की तासीर बताई है आपने!!
बहुत ही सुन्दर कविता
ऐसा ही तो करती है नारियां ...
मुश्किल होता तो है उनका चेहरा पढ़ पाना :)
आईना आईना ही तो दिखा रहा है ...
बहुत बढ़िया !
मुकेश जी आपकी कविता की जितनी तारीफ की जाये कम है
शब्दों का सही इस्तेमाल किया है आपने...आपका आईना सच बोलता है
बहुत खूब ऐसे ही लिखते रहे
मुकेश भाई 39 टिप्पणियों के बाद मेरी यह टिप्पणी शायद आपको अजीब लगेगी। पर आपकी कविता आइने पर ही है। और आईना झूठ नहीं बोलता। मेरे लिए भी कविता आईने की तरह ही है। मैं उसके सामने खड़ा होकर झूठ नहीं बोल सकता। विषय के लिहाज से आपने नए विषय को लिया है। पर आपकी अन्य कविताओं की तुलना में यह कमजोर कविता है। खासकर इसलिए कि विचार उलझे हुए हैं। पंक्तियों का तालमेल भी गड़बड़ाया हुआ है। इस पर थोड़ा और काम करने की जरूरत है।
आईने पर इतनी सुन्दर कविता...बहुत अच्छी है
bahut hi sarjnatmak soch.... very nice dost mama...!
अत्तः नहीं आने देता
मैं चेहरे पे भाव
ताकि वो दिखे निर्विकार
पहचान न पाए आइना...
बहुत खूब ! पर जो आइना मन के अंदर है उसे कैसे दे धोखा ?
"इसलिए हमने भी सोच लिया
या तो रहे शुद्ध विचार
या फिर चेहरा दिखे निर्विकार
जब रहे सामने
ये आदमकद आइना"
बहुत सुन्दर कविता....एक गीत की पंक्तियाँ याद आ रही हैं ...तोरा मन दर्पण कहलाये...
शुभकामनाएँ....
nari hetu apke vichar achchhe nahi lage .sab ko ek dharatal per nahi rakkha jata
@चैतन्य तुम्हें भी शुभकामनायें...
@अरे नीलम जी, क्यूं हमें ऐसे बड़ा बनाते रहते हो, हमें अपनी हैसियत का पता है...:)
@ सतीश सर, आपको अगर ऐसा लगा, तो यही बहुत है.........:), धन्यवाद् सर!
@मीनाक्षी आपके शेर के लिए वाह वाह...!
@:) सच में सोमा ऐसा कुछ हो पाता ..
@सदा शुक्रिया....
@काजल जी, बस कमरे में बैठे बैठे एकाएक बन गयी ये कविता..
बहुत कि कोशिश
मिटा पाऊं बुरी इक्षाएं
मन में रह पाए सत्य
और सुगन्धित विचार
ताकि चेहरा दिखे विशुद्ध
जब सामने हो चमकीला आइना.
कोशिश जारी रखें. सुन्दर व्यंजना है आपकी . आभार -अवनीश सिंह चौहान
सच है, स्वयं को देखना बड़ा मुश्किल है
Mukesh Bhai,
Very nice approach.
Attempt to read your mind honestly has been reflected here.
निःशब्द...
mukesh ji
ham jab bhi aaine ke samne hote hain aaina hamko hamesha haqikat hi dikhati hai . chahe lakh koshish karke apne bhavo ko daba jaayen par aaina to man ka darpan hai sachchai kab tak chhupa sakte hain .
bahut hi behatreen prastuti ke liyr hardik badhai .
deri se comment dalne ke liye xhma chahti hun.
dhanyvaad
poonam
इस कविता में आपके विचार बहुत अच्छे लगे ।
या फिर चेहरा दिखे निर्विकार
जब रहे सामने
ये आदमकद आइना
बहुत सार्थक विचार ....अच्छी प्रस्तुति
mukesh ji...
adbhud kriti...congratulation
बहुत अच्छी लगी आपकी कविता . बधाई
गोदरेज की अलमारी में आपका चेहरा कहाँ है ये तो कुछ
कुशन से रखे हैं ......
): ):
काला हुआ सफ़ेद बाल
हमेशा की तरह
जिसको कभी
महसूस भी नहीं कर पाता आइना
bahut khoobsurti ke saath likhe hain.wah.
सत्य का परिचय आइना से मिलता लेकिन जिंदगी के जद्दोजेहद में जब इंसान खुद को नहीं समझ पाता तो आइना कहाँ से परखे? बहुत सही कहा आपने, सुन्दर अभिव्यक्ति केलिए बधाई!
अच्छे भाव हैं...
इच्छाएँ...अंततः..
बहुत खूब मुकेश जी ... आईने में छिपी काबलियत को पहचान पाना हर किसी के बस में नहीं ... अच्छी रचना है ...
@बड़े भैया...(बिहारी बाबु)...आपके शब्द मेरे लिए खजाना है...:)
@ स्वागत है सवाई सिंह जी...मेरे ब्लॉग पे आने का..
@ वाणी दी, प्रीती, इन्द्रनील जी, धन्यवाद.......
@ अंजू जी...सबसे पहले तो आपका स्वागत है, मेरे ब्लॉग पे, तीस पर आपने मेरी इतनी बड़ाई कर दी, कि दिल बाग बाग हो गया..:डी
@राजेश भैया...आपके शब्द सर आँखों पर...कृपया आप ऐसे ही मेरी गलती बताते रहें ..
@ज्योत्स्ना जी, ऐसे ही आप मेरे हर कविता पे गीत गुनगुनाती रहें...:)
"तुम ही से मुहब्बत
तुम ही से लड़ाई
अरे मार डाला दुहाई दुहाई"
कभी यही आइना जिंदगी देता है कभी कभी हमें ही मुह चिढाता है
पर बदल न पाया
अन्दर का विचार
अत्तः नहीं आने देता
मैं चेहरे पे भाव
ताकि वो दिखे निर्विकार
पहचान न पाए आइना...
आईने को धोखा दे सकते हैं. खुद का क्या. . शुभकामना
aaina sirf chehra dikhata hai us par likhe bhav man ki aankhon se dekhe jate hai...aur ek bar aap man ki aamnkhon se dekhana seekh le to fir koi bhi aaina nirvikar chehre me chhupe bhav bhi dikha jata hai....baki to aaina abhasi chhavi hi dikhata hai aur use sunder roop me darshaya hai aapne..
स्वयं को देखना बड़ा मुश्किल है !
बहुत सुंदर ...सच में हकीकत का सामना करवाता है आइना.....
waah mukesh ji khud se khud ka sakshatkaar kar le koi bhi aapki ye aaina rachna ko padh kar ..........'
bahut sunder prstuti......
आपकी रचना 'आईना' आत्मनिरीक्षण करने को विवश करती है | आत्मसमीक्षा को बल देती है |
बहुत ही पवित्र भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति जो वास्तविक जीवनमूल्यों की ओरध्यानाक्रिष्ट करने में सफल है |
प्रशंसनीय !
@डॉ. राजेंद्र...........शुक्रिया! मैंने नारी के विषय में पहले ही अपने विचार रखे हैं..!
@धन्यवाद् अब्निश जी, सुनील जी., पूजा ........
@ पूनम जी...देरी कि तो कोई बात ही नहीं..........पर हाँ आपके कथन सर आँखों पर..
@डॉ. दिव्या, संगीता दी, आशा जी..............आप सबके शब्द मेरे लिए अनमोल थाती हैं..
निर्विकार ही देखने में सहूलियत ज्यादा है ...easy way out ...वरना इतना समय कह्ना की खुद को मंज धो के ..बोले तो पोलिश करके ...एक दम ideal बनने का ..एक अच्छा विषय ..और सुदृढ़ अभिव्यक्ति ...आइने के सम्बन्ध में मेरा मानना ये है की..एक तो उसकी याददाश्त बेहद कम.होती है.बस चेहरा ही याद रहता है उसे ..मन की तह तक कह्ना पहुँच पाता है...जब दिखेंगे तो चेहरा वही ..मुखौटे वाला दिखेगा.हमेशा एक सा......दुसरे..उसमें ..उल्टा दीखता है..आपका दायाँ उसका बयां ..पर ये कविता तुमने क्यूँ लिखी मुकेश ...तुम्हारे व्यक्तित्व का जो उजागर पक्ष है..वो बेदाग़ ..और सादगी से भरा ही है..एक सार्थक प्रयास ...बधाई
चेहेरा रहे निर्विकार जब रहे सामने ये आदम कद आइना ।
क्या खूब ।
चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं
आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ
पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं
dushyant kumar
चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं
आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ
पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं
Ramavatar Tyagi..is the poet
मेरे घर के गोदरेज के अलमारी में
लगा आदमकद "आइना"
जब भी देखता हूँ अपनी अक्स
खुल जाती है पोल
न चाहकर भी चेहरे में
दिख जाते हैं अशुद्ध विचार
हो ही जाता है सच का सामना...
kabhi kabhi adbhut cheeze maun kar deti aur waah ke siva kuchh sujh nahi raha ,gajab ka likha hai man khush ho gaya .
प्रिय मुकेश जी, इतनी सुन्दर व भावपूर्ण कविता हेतु बघाई । जी, सत्य से सामना व साक्षात्कार हमारे आडंबर व विकार पूर्ण स्वरूप व मानसिकता के लिये घबराहट पैदा करता है । गोदरेज की आलमारी के आइने को तो कोई सफेद बाल को काला करके या चेहरे के मेकअप से छिपा ले, पर मन के दर्पण में कुछ भी नहीं छुपता ।
मैं ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए पिछले कुछ महीनों से ब्लॉग पर नियमित रूप से नहीं आ सकी!
बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! बढ़िया लगा! उम्दा प्रस्तुती!
@ डॉ. शरद, मृदुला जी,देवेन्द्र जी, रचना जी, "मेरे भाव " धन्यवाद...
@हाँ हरकीरत जी, कुशन ही तो है, जो बदला चेहरा बता रहा है...:D ...
@जेन्नी दी...इतने सुन्दर शब्दों के लिए साधुवाद.....
@दिगम्बर सर, आपके कमेंट्स मेरे लिए अहोभाग्य हैं...:)
.
@जी कविता जी..........आपकी बातो से सहमत!
@दीपक सैनी...मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है..
@रजनी जी, आशा जी, ..धन्यवाद्!
@सुरेन्द्र सर...आपके कमेंट्स सर आँखों पर...बहुत बड़ी बात कह दी सर आपने..:)
@अंजना दी...मेरे चेहरे के भाव को पढ़ पाने के इए शुक्रिया कहूँ..:)...रहने देते हैं.!
@ज्योति जी...अच्छा लगा, आपके कमेन्ट को पढ़ कर.
@देवेन्द्र सर...धन्य हैं, हम जो आप यहाँ पधारे, ....धन्यवाद्
@बबली जी...........शुक्रिया..
Mukesh ji new mirrior godrej may laga dijiy apke vichar badal jayege
कवि की इमानदारी कविता के प्रति...को कायम रखते हुए आपने बहुत खूबसूरती से... शब्दों को भवव दिए हैं इसके लिए आप सही मायनों में बधाई के पात्र हैं !!!
बेबसी-ऐ-आईना...
हदों में कैद आईना ....
फितरत-ऐ-इंसा...
खुदी में डूबा इंसा...---वन्दना....
कहे बिना रह नहीं पायी... अशेष शुभकामनाएं ..:)
बहुत उम्दा प्रस्तुति आभार
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
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