जिंदगी की राहें

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Sunday, September 19, 2010

~:: पल ::~

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पल

बीते हुए पल

गुजरे हुए पल

मीठे पल

दर्द भरे पल

आनंददायक पल

आह्लादित पल

उल्लासित पल

अनमोल पल

कसकदार पल

जज्बाती पल

लहूलुहान पल

खुनी पल

यादगार पल

उत्तेजित पल

उन्मादित पल

रोमांचकारी पल

रुआंसे पल

शांत पल

ठसकदार पल

आह भरते पल

बेशकीमती पल

जिंदगी के ये सारे पल!!



और इन पलो की

गुंथी हुई माला

बन जाती है स्मृतियां

यादगार स्मृतियाँ

अगर सहेज कर रखो

तो बन जाती है.......

जीने की आधार स्मृतियाँ .......


उपरोक्त पंक्तियाँ मैंने बस ऐसे ही सोचा और कागज में उतार दिया. फिर अपने एक मित्र ब्लॉगर "श्रीमती नीलम  पूरी" को बताया तो उन्होंने कुछ मिनटों में इन पंक्तियों को एक सशक्त कविता में रूपांतरित कर दिया........! वैसे सच कहूँ तो उन्होंने एक तरह से मेरी पंक्तियों पे रोड रोलर ही चलाया है, लेकिन उनका कुछ मिनटों का प्रयास अच्छा लगा, इसलिए उसको नीचे लिख रहा हूँ......:


पल

जो बीत गए कल

जो कुछ मीठे कुछ खट्टे पल

वो कसक भरे, दर्द भरे पल

कुछ आनंद दायक कुछ आह्लादित पल

कुछ कसक से भरे हुए पल

कुछ बहा ले गए जज्बाती पल

कुछ लहूलुहान करते पल

कुछ खुनी खंजर से दिल में उतारते पल

वो प्रीत के यादगार पल

जो कर गए थे उत्तेजित वो पल

उन्मादित पल

कुछ कर गए रुआंसे से

कुछ रह गए बचे हुए शांत पल

कुछ ठसकदार पल

और बाकि आह भरते हुए पल

फिर भी बेशकीमती पल

जिंदगी के ये सारे पल

जो बन गयी मेरी यादो के

कुछ दर्द भरे कुछ हसीन पल

कुछ कर गए उल्लासित वो बीते हुए पल

कुछ खुनी खंजर से दिल में उतारते हुए पल



और इन पलो की

गुंथी हुई माला

बन जाती है स्मृतियां

यादगार स्मृतियाँ

अगर सहेज कर रखो

तो बन जाती है.......

जीने की आधार स्मृतियाँ .......


Saturday, September 4, 2010

राखी की चमक

 (दीदी, जीजाजी, उनकी तीन बेटियां और मेरे दो बेटे) 

वैसे तो आज मेरा जन्मदिन है..........:),
लेकिन मैं आज किसी और वजह से यहाँ ब्लॉग पे हूँ. पिछले दिनों 29.08.2010 को आधी रात में  मेरी प्यारी बड़ी दीदी ने मेरे सामने अस्पताल में दम तोड़ दिया..वो बहन जो मेरे से सिर्फ ३ वर्ष बड़ी थी.......वो जो मेरे लिए एक अच्छी दोस्त जैसी थी, जिसके साथ पूरा बचपन बिताया, खेले, पढ़े, मार-पीट की. वो उस दिन बिना बताये चली  गयी , और मैं कुछ नहीं कर पाया...जिंदगी में क्या क्या दिन देखने को मिलते हैं, ये उस दिन समझ में आया....जिस दीदी के लिए मैं समझता था, वो भाग्यशाली  है, हम जैसे माध्यम वर्गीय परिवार में जन्म लेने के बाबजूद उसके पति आज रांची उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जैसे पद पे हैं.........लेकिन ऊपर वाले को कुछ और मंजूर था.............अपने तीन कम उम्र की बेटियों को छोड़ कर पता नहीं कहा किस दुनिया में चली गयी........अब क्या कहूँ, भगवन उसकी आत्मा को शांति देना..........!!

कुछ पंक्तियाँ उसके लिए.............

आधी रात का वो पहर जो थी बहुत काली
अस्पताल का एक कमरा
जिसके बेड पर थी
मेरी वो दीदी
जिसने दो दिन पहले ही
उसी बेड पर बैठे हुए 
मेरी कलाई पे बंधी थी राखी
वो राखी जो दो दिन बाद तक 
चमकते हुए कह रही  थी
ऐ! दीदी के भैया 
कर कोशिश, बचा के रख 
उसकी जीवन नैया!!
तू है खैवैया!!!
पर वो मनहूस रात!!
जब मैं बैठा था सिराहने
सामने बेड के ऊपर लगा स्क्रीन
और उसकी आवाज
बता रही थी दीदी की वजूद
एक विश्वास - कुछ नहीं होगा!!

मैंने ली एक झपकी 
तो लगा दीदी ने दी थपकी
खोली आँख तो सामने दिखी
अश्रुपूरित नयन, जिसमे था दर्द
उफ़! आँखों में भी दिख 
सकता है दर्द
ये बस हो रहा था अनुभव
मैं हो रहा था सर्द!!
मैंने प्यार से किया स्पर्श 
"दीदी"! मैं हूँ न!!
"पागल हो क्या??"
बस एक की थी कोशिश
की दे सकूँ ढाढस !!!

पर होना था वही 
जो दिल चाहता था नहीं
एकाएक स्क्रीन के सारे
मीटर हो गए ग़ुम
मैंने खुली आँखों से 
उस मंजर को देखा
क्या कहूँ दिल चिहुंका..
चिल्लाया ...........दीदी..............!!!!!
लेकिन वो हो चुकी थी स्थिर
निस्तेज, शांत
जा चुकी थी चिर निद्रा में 

ऐसे लगा जैसे 
सब हैं खामोश
सारा अस्पताल खामोश
मैं भी एकदम से 
स्तंभित!! स्तब्ध!!
ऐ दीदी................!!!
पर मेरे कलाई की राखी
की चमक कह रही थी.........
पगले!! मैं हूँ तेरे साथ
कहाँ भागेगा मेरे से
विश्वास न हुआ,, पर उस माहौल में भी
मेरा चेहरा धीरे से मुस्कुराया था..........
पता नहीं क्या सच था.......
क्या जीवन है...........
क्या जीवन था..........

(मेरे दीदी के साथ अंतिम राखी.)