बीते कल की तो बात है
जब मेरे नेह का टुकड़ा
मेरी छुटकी
रेत से बनाती थी घरौंदा
कैसे पलक झपकते ही
हो गयी मुझ सी बड़ी
अब वो जूझती है
समुद्री लहरों से
दिखाती है हर दिन
अन्दर की जद्दो जहद
करती है सामना, डट कर
परेशानियों का, कठिनाइयों का
मेरी सोन परी, मेरी बच्ची !!
बीते कल की तो बात है
जब तुतलाती हुई कहती थी
मम्मा!! उस पप्पू ने मारा
और मेरे ढाढस बंधाने पर
रुआंसी हो, हो जाती थी चुप
अब हर दिन, करती है सफ़र
जलती आँखों से ही कंपकंपा देती है
सामने वाले को, अगर करे स्पर्श
स्पर्श नहीं, बद-स्पर्श
मेरी छुटकी !! मेरी सिंहनी !!
बीते कल की तो बात है
मैंने फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता के लिए
बनाया था उसे ‘राधा’
छमक कर कह उठी थी वो,
मम्मा! मेरा किशना आएगा कब ?
देखो आ ही गया न वो समय
मिलने ही वाला है
मेरी लाडो को
हमसफ़र !
उसका अपना, उसका किशना !
मेरी सुंदरी! मेरी लाडो !!
मेरी बिटिया,
मेरे दिल का टुकड़ा
मिले तुम्हे तुम्हारा अपना
वो विस्तृत प्यारा सा आकाश
जिसकी है तुम्हे चाहत
जो हो सिर्फ तुम्हारा
ऐसी है शुभकामना !!
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एक माँ के ओर से बेटी के लिए शुभकामनायें :)
मेरी कलम से !!
6 comments:
सार्थक और सुन्दर रचना। सादर।।
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इंटरनेट और हमारी हिन्दी
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-01-2015) को "बहार की उम्मीद...." (चर्चा-1855) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर प्रस्तुति
आमीन ... बेटियाँ जल्दी बड़ी हो जाती हैं और फिर वो संबल बन जाती हैं ...
sarthak or pyari prastuti hai....
bahut badhiya .
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