जिंदगी की राहें

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Saturday, September 15, 2012

कोलेज डे'स

आज सुना इंजीनियर्स डे है...
हम इंजिनियर तो नहीं , पर इस से मिलता जुलता गणित हमारा विषय था
तो कोलेज दिन को याद कर लिया...


कालेज के दिन
हम स्नातक विज्ञान के छात्र
वो भी गणित में प्रतिष्ठा 
ये कैलकुलस 
स्टेटिक्स डायनामिक्स
अलजेब्रा, अस्ट्रोनोमी या मेट्रिक्स 
2 -डी, 3-डी फिगर 
कब तक कॉपी में भरती 
त्रिकोणमिति की रेखाएं 
हमसे आँख मिला कर कहती 
बच्चे कर इंतज़ार 
कभी तो आएगी प्रीत या प्रीति
हर क्लास में होता 
तकरार का विषय
हम हैं कितने दब्बू
नहीं है यहाँ कोई चार्म
कितना बोरिंग है गणित
क्यूँ करें मेहनत
कोई तो नहीं
जो दे सके प्रेरणा
नहीं थी एक भी अबला
जो होती हमारे लिए सबला
नहीं थी कोई "नारी"
जो बोरिंग लेक्चर में दिख जाती तो
रहता इंतज़ार, रहती बेकरारी...
.
बस हम गणित के छात्र
करते इंतज़ार
राष्ट्रभाषा हिंदी के क्लास का 
वो हर तीन दिन बाद आता
कालेज के सबसे बड़े हाल में
मिल जाते सारे विज्ञानं के  छात्र
और बहुत सी खुबसूरत
तरुणी छात्राएं दिख जाते 
तभी तो हम सर की गूंजती आवाज में
लैला मजनू को तौलते 
आखिर हम छात्रो का जीवन 
हो रखा था नीरस
गलती से कभी मिलती
खूबसूरती और काव्य में प्रेम रस
तभी तो खुद में मजनू दिखता
लैला के फ्रेम में हर बार
नयी नयी बालाओं का चेहरा मचलता
पचास मिनट में दिल रम जाता
रहती हमारी चेहरे पर मुस्कान
क्योंकि जो भी गलती से मुस्काती
हमें उसमे लैला होने का हो जाता गुमान
हम छात्रों में होता तकरार
क्यूं न हो आखिर
हर हसीनो के लिए सारे रहते जो बेक़रार
.
ऐसे ही लड़ते झगड़ते 
आहें भरते
कब बीते दिन, बीते रैना
वो तीसरे दिन का इंतज़ार
खो गया सब कब और कहाँ
इस खोने पाने में हमने 
ढूंढा नया जहाँ 
क्यूंकि ज्ञान के मंच से
कर्म के  क्षेत्र का सफ़र
है जुदा, सबसे जुदा....



Thursday, September 6, 2012

चढ़ता उतरता प्यार



































वो मिली
चढ़ती सीढियों पर
मिल ही गयी
पहले थोड़ी
नाखून भर
फिर
पूरी की पूरी..
ओंठ भर
और फिर
प्यार की सीढियों
पर
चढ़ते चले गए....

वो फिर
मिली
उन्ही सीढियों पर,
पर इस बार
सीढियाँ नीचे जाती हुई
आँखे नम थी
नीचे दरवाजे तक
एक दुसरे के आँखे टकराई
फिर दूरियां
सिर्फ दूरियां ............!!

Tuesday, August 28, 2012

एक सफ़र



                       अपने अजीज मित्रों के द्वारा दिए गए शुभकामनायें, उनकी प्रेरणा से मेरे अन्दर जागने वाला जज्बा या कुछ करने की की कोशिश और साथ में कुछ अच्छा चल रहा समय ..... इन सबको जब आप मिलकर मेरे पॉकेट में जबरदस्ती डाल देंगे तो पिछले 22 अगुस्त का "कस्तूरी" साझा काव्य संग्रह का शानदार विमोचन और 27 अगस्त को लखनऊ में मुझे मिले "वर्ष 2011 के लिए मिला सर्वश्रेष्ठ युवा कवि का पुरुस्कार" और इनके साथ मेरा चमकता चेहरा (बेशक खुबसूरत नहीं है) दिखेगा....:)


जानता हूँ
अपने को
समझता हूँ
खुद को
नहीं हूँ नगीना
पर तुम सबका प्यार
व आशीर्वाद
कर चूका चमत्कार
हूँ अचंभित
फिर भी हूँ खुश
बरसाना ये प्यार बार बार:)



                      श्रीमती रश्मि प्रभा (दी) के हौसला अफजाई के कारण 2008 में तुकबंदी से शुरू की गयी की कोशिश और उसकी परिणति मुझे लखनऊ में दिखी जब अन्तराष्ट्रीय ब्लागेर सम्मलेन में मेरे जैसे नौसिखिये के लिए तालियाँ बज रही थी .



                     सबसे पहले तो "कस्तूरी" के संपादन के लिए श्री शैलेश भारतवासी (हिंद-युग्म) द्वारा मेरे में विश्वास जगना की आप ये कर सकते हैं, फिर श्रीमती अंजू चौधरी का कहना की मुकेश आप आगे बढ़ो हमारा साथ आपके साथ है मेरे मुख में अमृत की तरह था.  और फिर सब कुछ पल दर पल बेहतर होता चला गया.  ब्लाग जगत के कुछ नामचीन चेहरों ने अपनी रचना मुझे बिना कोई हिल-हुज्जत के हवाले कर दी . विश्वास नहीं करेंगे, मैंने श्रीमती रश्मि प्रभा "दी" से रचनाएँ बिना कस्तूरी में प्रकाशन के बारे में बताये ले ली.  "दी" क्षमा करना, ये गलत था .  इस पुस्तक के लिए सबको शामिल करते समय बस मैं सबकी रचनाएँ खुद से तुलना करता था, और हर बार मुझे बाकि 23 प्रतिभागी कवि/कवियत्री बेहतरीन लगे.. और यही सबसे खास वजह है इन सबका मेरे साथ होने की. इस पुस्तक के संपादन के लिए श्रीमती अंजू चौधरी ने जितनी मेहनत की, अगर मैं उसका 10% भी खुद करता तो बात अलग होती लेकिन इसकी जरुरत ही नहीं पड़ी, मेरे बिना मेहनत के सभी प्रतिभागी रचनाकारों, मेरे अभिन्न मित्रों और प्रकाशक श्री शैलेश जी ने इस पुस्तक को सके नजर का प्यारा बना दिया . ऐसा मुझे लगता है .



               इस पुस्तक का क्या नाम हो, इसके लिए भी मैंने बहुतों से सलाह ली, और उनमे से ही मेरी एक और दीदी श्रीमती अंजना सिन्हा( ये ब्लागेर नहीं हैं, पर एक बेहतरीन रचनाकार हैं ) द्वारा सुझाया नाम "कस्तूरी" मन में बैठ गया . दिल बाग-बाग हो गया जब श्री नामवर सिंह जी ने कहा - जिसने भी ये नाम सुझाया, बहुत बेहतरीन है .


             विमोचन के मुख्य आतिथ्य के लिए श्री नामवर सिंह, जो एक महान आलोचक हैं, ने श्रीमती अंजू से किये हुए वादे के अनुसार मेरे सामने सहमती दी थी, आने की. फिर भी दिल कह रहा था क्या वो आयेंगे ? वो सच में हिंदी भवन के सभागार में आये और साथ में श्री श्याम सखा श्याम, अध्यक्ष, हरियाणा साहित्य अकादमी, श्री लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, निदेशक, आकाशवाणी और श्री मदन सहनी जी का भी सान्निध्य मिला, जो की एक अनाम से साझा काव्य संग्रह को अपने आप नाम दे रहा था . सभी २४ प्रतिभागी रचनाकार जो इस विमोचन में आये या जो किसी करणवश नहीं आ पाए, दिल से इसके बेहतरी के लिए जुड़े थे . फिर भी नागपुर से श्री अजय देव्गिरे और बस्ती से श्री अमित आनंद पाण्डेय का विमोचन में आ पाना, सुखकर था . एक महान आलोचक व दयास पर बैठे जाने-पहचाने लोगो के सामने प्रतिभागी कवियों ने ज ओ काव्य पाठ किया, जिसको सबने मुक्त-कंठ से सराहा . करीबन 130 लोगो से भरा दर्शक दीर्घा बता रहा था इस विमोचन का आयोजन सफल था. विमोचन के दिन ही श्रीमती रंजू भाटिया और श्रीमती वाणी शर्मा (प्रतिभागी रचनाकार) ने अपने ब्लाग पर कस्तूरी की समीक्षात्मक रिपोर्ट भी पेश कर दी.. जो ये मुझे दिलासा दे रहा था की मैं खुशनसीब हूँ . ये पुस्तक फ्लिप्कार्ट पर 10% और इनफी बीम पर 20% के डिस्काउंट के साथ उपलब्ध है . फ्लिप्कार्ट पर 70 से जायदा प्रति की बिक्री भी हमें दिलासा दे रही है की ...

"हम होंगे कामयाब एक दिन................"



       एक मन माफिक विमोचन समारोह के सिर्फ चार दिन बाद अपने को अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन (परिकल्पना व तस्लीम के तत्वाधान में आयोजित), लखनऊ में खुद को सम्मानित होता देख अन्दर से एक मुस्कराहट भरी आवाज कह रही थी ...
"मुकेश! खुश रहना सीख!"


           श्री रविन्द्र प्रभात जी एवं श्री जाकिर रजनीश के अगुआई में आयोजित इस सम्मलेन में मुझे बहुत से बड़े व जाने पहचाने ब्लागर से मिलना नसीब हुआ. मैं इतना खुश था की इस आयोजन में अपनी धर्म पत्नी अंजू और बेटे यश-रिषभ के साथ पहुंचा . पूर्णिमा वर्मन जी, रवि रतलामी जी , पाबला जी, अर्चना चावजी "दी", निवेदिता श्रीवास्तव "दी", अमित श्रीवास्तव जी, सुमित प्रताप सिंह जी, अरविन्द मिश्र जी, रंजू भाटिया जी, सुनीता शानू "दी", रागिनी मिश्रा, शिखा वार्ष्णेय, शिवम् मिश्रा, जी.पी.तिवारी जी, वंदना अवस्थी दुबे जी, आशीष राय जी, इस्मत जैदी जी, चांदी दत्त शुक्ल जी, निधि टंडन जी, निरुपमा सिंह जी, रूपचंद मयंक शास्त्री जी, संजय भास्कर, नीरज जाट, रंधीर सिंह सुमन जी, अलका सैनी जी, डॉ. राम द्विवेदी जी, आकांक्षा यादव जी, के.के यादव जी, पाखी, अविनाश वाचस्पति जी, यशवंत माथुर, शीलेश भारतवासी, डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव, सतोष त्रिवेदी जी, कुंवर कुश्मेश जी, दर्शन लाल बवेजा जी, सिंघेश्वर सिंह जी, धीरेन्द्र सिंह भदोरिया जी, डॉ. सुभाष राय जी, जैसे ब्लाग जगत के चमकते सितारों से मिलना एक दिवा स्वप्न जैसा था .

  तिस पर श्रीमती रश्मिप्रभा "दी" को मिलने वाला दशक का सर्वश्रेष्ठ ब्लागर का सम्मान व शमशेर जन्मशती काव्य सम्मान को प्राप्त करने के लिए उनके अनुपस्थिति में ग्रहण करना और मंच पर उनको प्राप्त होने वाली शील्ड व प्रमाणपत्र के साथ फोटो खिंचवाना अविस्मरनीय था . क्या कहूँ, वक्त कैसे ख़ुशी देता है, ये मैं समझ सकता हूँ .



अब सब कुछ बीत चूका है, मैं धरातल पर आ चूका हूँ, फिर भी एक इल्तजा -----

                              "मेरे हिस्से का प्यार, थोड़ा जायदा बरसते रहना......"

Saturday, August 11, 2012

मैया

























मैया !! मैं बड़ा हो गया हूँ.
इसलिए बता रहा हूँ
क्यूंकि तू तो बस
हर समय फिक्रमंद ही रहेगी....
.
याद है तुझे
मैं देगची में
तीन पाव दूध लेकर आया था
चमरू यादव के घर से
..... पर मैंने बताया नहीं था
कितना छलका था
लेकिन तेरी आँखे छलक गयी थी
तुमने बलिहारी ली थी
मेरे बड़े होने का...
.
एक और बात बताऊँ
जब तुमने कहा था
सत्यनारायण कथा है
..राजो महतो के दुकान से
गुड लाना आधा सेर...
लाने पर तुमने बलाएँ ली थी
बताया था पत्थर के भगवान को भी
गुड "मुक्कू" लाया है !!
पर तुम्हें कहाँ पता
मैं बहुत सारा गुड
खा चूका था रस्ते में
पर बड़ा तो हो गया हूँ न....!
मैया याद है ...
मेरी पहली सफारी सूट
बनाने के लिए तुमने
किया था झगडा, बाबा से
पुरे घर में सिर्फ
मैंने पहना था नया कपडा
उस शादी में...
पर मुझे तो तब भी बाबा ही बुरे लगे थे
उस दिन भी
आखिर बड़े होने पर फुल पेंट जरुरी है न...
.
मैया मैं जब भी
रोता, हँसता, जागता, उठता
खेलता पढता
तेरे गोद में सर रख देता
और तू गुस्से से कहती
कब बड़ा होगा रे.....
अब तू नहीं है !!!
पर मैं सच्ची में बड़ा हो गया...
मेरा मन कहता है
एक बार तू मेरे
गोद में सर रख के देख
एक बार मेरी बच्ची बन कर देख
मेरी बलिहारी वाली आँखों में झांक
कर तो देख..
देखेगी.............??????
(मैया बाबा... मेरे माँ-पापा नहीं मेरे दादा-दादी थे, और मुक्कू ..मैं !!!)
 



Saturday, August 4, 2012

अख़बार

ब्लॉग्गिंग के शुरुआत के समय की ये रचना..... पिछले पोस्टस देख रहा था, तो एक दम से अच्छा लगा... बेशक तुकबंदी है ... पर मुझे खुद को अच्छी लगी... तो शेयर कर रहा हूँ....!!!
















दिन था रविवार,
सुबह की अलसाई नींद
ऊपर से श्रीमती जी की चीत्कार...
देर से ही सही, नींद का किया बहिष्कार
फिर, चाय की चुस्की, साथ में अख़बार
आंखे जम गई दो शीर्षक पर
"दिल्ली की दौड़ती सड़क पर, कार में बलात्कार"
"सचिन! तेरा बैट कब तक दिखायेगा चमत्कार"


सचिन के बल्ले के चौके-छक्के की फुहार
हुआ खुशियों का मंद इजहार
दिल चिहुंका! हुआ बाग-बाग! चिल्लाया॥
सचिन! तू दिखाते रह ऐसा ही चमत्कार
कर बार-बार! हजारो बार......

तदपुरांत, धीरे धीरे पलटने लगा अखबार
पर, तुरंत ही आँखें और उँगलियों ने किया मजबूर
आँखे फिर से उसी शीर्षक पर जा कर हो गयी स्थिर
एक दृश्य बिना किसी टेक-रिटेक के गयी सामने से गुजर 
सोच भी गयी थम!
आँखे हो गयी नम!!


उसी दिल से, वहीँ से, उसी समय
एक और बिना सोचे, समझे, हुआ हुन्कार
क्या
क्या ये भी होगा बार-बार!! हजारो बार..
क्या ऐसे ही महिलाओं की इज्जत होगी तार-तार.....
आखिर कब तक.....................!!!!!!!!!!!!!!!


Wednesday, August 1, 2012

"दी", "दीदी" या "दिदिया" ....















रेशम की डोरी
अगर बांधा हो बहना ने
तो खुद ब खुद
बन जाता है रिश्ता
एक अटूट रिश्ता
प्यारे से "भाई व बहन"
के बीच का
जिसमे सिर्फ होती है
एक दुसरे के लिए दुआएं |
एक अदद डोरी
की यही है ताकत |
यही है रक्षा-बंधन!

लेकिन यहीं रिश्ता
यही प्यार
यही आशीर्वाद
मैंने पाया है 
उनसे भी 
जिनको मैंने
प्यार से, सम्मान से
सिर्फ कह पाया
"दी", "दीदी" या "दिदिया" ....
या जिन्होंने मुझे 
कहा है "भैया" !
.
जब भी मैंने सुने हैं 
उनके शब्द
उसमे छलकता है प्यार 
होती है 
दुआओं की बरसात
मैंने पाया है
उनसे अनमोल प्यार
और एक अलग सा सम्मान..
.
मेरी सारी बहना
जिनसे है खून का रिश्ता
या जिनके लिए
अन्दर से निकल पाई 
आवाज
ये ही मेरी हो सकती है 
"बहन"
उन सबको नमन!
दिल से नमन!
जिंदगी की ढेरों खुशियाँ
उनको समर्पण!!
बना रहे तुमसे
रक्षा बंधन !!
युग युग का बंधन !!

Wednesday, July 25, 2012

"शब्दों के अरण्य में"






पिछले दिनों बहुत ही खुबसूरत साज-सज्जा के साथ मेरे प्रिय प्रकाशन संस्थान "हिंद-युग्म" से प्रकाशित व श्रीमती रश्मि प्रभा द्वारा सम्पादित, उनके नजरो में 60 श्रेष्ठ रचनाकारों की पुस्तक "शब्दों के अरण्य में" श्री शैलेश भारतवासी जी से प्राप्त हुई | इस पुस्तक का आवरण चित्र सुश्री अपराजिता कल्याणी ने बनाया है जो निसंदेह मनमोहक है, वो पहली नजर में पाठक को आकर्षित करती है | पुस्तक की साज-सज्जा व प्रिंटिंग के लिए एक बार फिर से शैलेश जी को 100 में से 110 नंबर दिए जा सकते हैं | हर रचनाकार की रचना के साथ एक बाक्स में उनका परिचय खुबसूरत  श्वेत-श्याम फोटो के साथ डालना मुझे बहुत भाया | अब मुद्दे पर आते हैं | वैसे तो मैं एक पाठक हूँ पर पर एक बार कोशिश करना चाहता हूँ, अपनी बातों को इस पुस्तक के लिए समीक्षात्मक दृष्टि से रख पाऊं | पूरी 60 रचनाओं के सम्बन्ध में कह पाना तो संभव नहीं है, पर कोशिश रहेगी, जिनको जानता हूँ या जिनकी रचना बहुत भायीउनके लिए कुछ अपने शब्द कह पाऊं |

रश्मि प्रभा "दी" ने शब्दों के जंगल से ढूंढ़ ढूंढ़ कर एक से बढ़ कर एक रचनाकार की रचना को शामिल किया है जो यह दर्शाता है कि कैसे दीदी इस हिंदी काव्य कि दुनिया में , इस शब्दों के अरण्य में जीती है, एक साथ 60 विभिन्न रचनाकारों को को एक पुस्तक में बांधना, यह रश्मि दी जैसी सबको स्वीकार्य दस्तखत द्वारा ही यह संभव है | और फिर इनमे खुद को पाना, मेरे लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि हैहाँ तो मैं अब रचनाओं पर गौर फरमाना चाहता हूँ .............

"शिव रात्री के रोज
पत्ते और कच्चे फलों से 
विरक्त कर दिया गया
बेल का पेड़"
श्रीमती अंजू अनन्या जी (www.anjuananya.blogspot.in) का कविमन भगवान शिव कि आराधना के बदले बेल के पेड़ के लिए धड़क रहा है | यह सादगी एक कवि मन ही दिखा सकता है | बहुत ही प्यारी दिल को छूती रचना मुझे लगी |..

श्रीमती अनुलता राज नायर जी (www.allexpression.blogspot.in) ने सच व झूठ के बीच की रस्सा-कस्सी को शब्दों में बताते हुए कहती हैं ..........
"झूठ बड़ा चालबाज है 
वो सारे प्रपंच करता है
खुद को सच साबित करने में
सत्य निर्विकार होता है ...
उसे अपना भी पक्ष लेने कि आदत नहीं होती "

श्रीमती अपर्णा मनोज (www.manuparna.blogspot.in), कृष्णा के लिए "विष का रंग क्या तेरे वर्ण सा है कान्हा?' में कहती है ....कितना खुबसूरत भाव है...!
"महावर में डूबकर
मैं मीरा बनी थी
और तेरे युग को खिंच लाई थी
पुनश्च....."

श्री  अमरेन्द्र "अमर"  (amrendra-shukla.blogspot.in) अपने किताब के रुपहले पन्नो को शब्दों में ढालने कि कोशिश कर रहे हैं तो श्री अमित आनंद पाण्डेय (amitanand96115354.blogspot.inजो मेरे अनुज है, और जिन्हें मैं अपने बहुत करीब पाता हूँ, प्यारे से शब्दों में मर्यादा पुरुषोतम राम को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं, उनके बेटे लव-कुश के आक्रोश को शब्द देते हुए वो काहते हैं ....
"तुमने 
कौन सा कर्तव्यवहन किया
हमारे  लिए
क्या तुम्हारी अयोध्या में
सिर्फ जंगल ही शेष था 
हमारी प्रसव को ..."

श्री अश्वनी कुमार जी (www.dekhadekhi.blogspot.in) कि प्रेमिका सी कविता मुझे बेहद भायी और सच में ऐसा होता भी है, एक कवि मन के साथ रचना एकदम ऐसा ही खिलवाड़ करती है, प्यारी उच्छरिन्ख्ल  प्रेमिका की तरह |
"प्रेमिका सी कविता
कई दिनों बाद मिलो तो 
बात नहीं करती आसानी सी 
अनमनी सी रहती है 
रूठी......."


 पर्यावरण व पेड़ों  के दर्द को शब्दों में समेटने कि कोशिश कि है श्रीमती ऋता शेखर मधु जी (www.madhurgunjan.blogspot.in) ने, जो बेहतरीन लगा |
"देख विशाल वृक्षों की
कटी निर्जीव कतार
ब्रह्मा कर उठे अट्टहास
रे मनुष्य! मैंने तुझे बनाया
तेरी सुरक्षा के लिए पेड़ बनाये
पेड़ों का करके विनाश
क्यों कर रहा है
सृष्टि का महाविनाश!
पापी है तू, अभी भी संभल जा"

श्रीमती कविता रावत जी(www.kavitarawatbpl.in) हर घटना के पीछे के कारण को काव्यात्मक रूप देते हुए कहती हैं .
"यूँ तो अचानक कहीं कुछ नहीं घटता
बात जब तेरी उठी
दर्द जब हो गए हरे
हो गए बयान निःशब्द
नयन ताकते रहे..."

श्री कैलाश शर्मा सर (www.sharmakailashc.blogspot.in) के बोलते शब्द दिल के अंतसः को छूते हैं |

श्रीमती गार्गी चौरसिया जी रिश्ते के अनमोलता को शब्द देते हुए कहती है 
"वो रिश्ता
उस जिस्मानी रिश्ते से
कहीं अधिक सगा होता है 
जो अनुभूति से बनता है ..."

युवा कवियत्री गार्गी मिश्रा (www.inkinmie.blogspot.in) के शब्दों के सोच कैसे चकमक करते हैं, देखिये...
"कल रात
खिड़की के बाहर देखा था 
स्ट्रीट लाइट के नीचे एक जुगनू कुछ सोच रहा था
माथे पर हाथ फेरते हुए
डायरी लिख रहा था शायद"
शब्द व सोच जब विस्तार पाते जाओ तो कविमन कुछ भी कर सकता है , ऐसा ही लगा ये उपर के शब्दों को पढ़ कर..., है न!

"ओ मृत प्राय पल" के द्वारा श्रीमती गीता पंडित जी (www.bhaavkalash.blogspot.in) में कहती हैं ...
".............
होना है तुम्हें फिनिक्स
ओ मृत प्राय पा
गाओ और बानो मेरी मुक्ति के देवदूत
मुझे जन्म लेना है आभी तुम्हारी राख से........."

डॉ. कौशलेन्द्र मिश्र जी (www.bastarkiabhivyakti.blogspot.in) ने तो मोबाईल से आजिज होकर उसे नीम के ऊँची फुनगी पर ही टांग दिया और कहते हैं...
" ... कुछ व्यवधान तो आयेंगे, पर
दस साल पहले कि जिंदगी
जीने का मजा तो आयेगा.
...............................
तो आप कब टांग रहे हैं अपना मोबाईल"

उफ़!! कितना प्यार उधेला है डॉ. जैनी शबनम "दी" (www.lamhon-ka-safar.blogspot.inने इस रचना में...
"दर्द को खुद जीना और बात
एक बार तुम भी जी लो
मेरी जिंदगी
जी चाहता है 
तुम्हें श्राप दे ही दूँ.
"जा तुझे इश्क हो!"

डॉ निधि टंडन जी (www.zindaginaamaa.blogspot.in) व्यस्तताएं को शब्द देते हुए कहती हैं ………….
" सच है न...
प्यार में कभी कोई खाली नहीं होता 
प्यार हमेशा व्यस्त रहने का नाम है ..."

डॉ. प्रीत अरोड़ा जी (merisadhna.blogspot.in) डॉ मोनिका शर्मा जी (meri-parwaz.blogspot.in) दोनों ही बेटियां के दर्द को शब्द ढालने कि कोशिश कर रही है |
"कूड़ेदान में मिलती 
मासूम बेटियों के समाचार 
.....................
नहीं उतरती मन में सिहरन भी 
और न ही कांपती है हमारी आत्मा
बड़ा विशाल ह्रदय है हमारा..."
एक शशक्त चोट करती रचना है बेटियों के प्रति होते अत्याचार पर |

श्री दिगंबर नासवा सर (www.swapnmere.blogspot.in) के भाव भरे शब्द अच्छे लगते है, पढ़ते हुए...
"कहने  भर से क्या कोई अजनबी हो जाता है
उछाल मारते यादों के समंदर 
गहरी नमी छोड़ जाते हैं किनारे पर
वक्त के निशान भी तो
दरार छोड़ जाते हैं चेहरे पर"

पितृत्व समाज पर कुठाराघात करते हुए श्रीमती दीपिका रानी जी (www.ahilyaa.blogspot.in) का कहना है ..
"पति से बिछुड़ी औरत 
एक रद्दी किताब है 
जो पढ़ी जा चुकी है
एक - एक पन्ना
और फेंक दी गयी दुछत्ती पर....."
इस रचना ने सच में अन्दर तक हिला दिया ......

पेशे से उप-पुलिस अधीक्षक  सुश्री पल्लवी त्रिवेदी (www.kuchehsaas.blogspot.inका कवि मन इंसान कि मासूमियत खोने से बचाने कि कोशिश करते हुए कहती है 
"कल देखा
एक दादाजी को
पार्क वीरान होने के बाद
शाम के धुंधलके में
झुला झूलते............"

सुश्री बाबुशा कोहली (www.babusha.blogspot.in) एक दम नए बिम्ब "जूते" परा शब्द गढ़ते हुए कहती हैं ..
"घिसे तल्ले वाले जूते 
तुम तक पहुचने कि अनिवार्य शर्त थे
और मैं दिन रत पैदल चलती रही ."अलग अलग बिम्बों को लेकर उनके बोलते शब्द एकदम से ध्यान आकर्षित करते हैं | ऐसा मुझे लगता है ....

श्रीमती मीनाक्षी धन्वन्तरी (www.meenakshi-meenu.blogspot.in) एक महिला के व्यक्तित्वा को पढने कि कोशिश करती है और शब्द गढ़ते हुए कहती है ...
"किसी ने नहीं कहा था -
वह मानव के छल कपट से आहत है
किसी  ने नहीं कहा था -
वह प्रेम रस पीने को व्याकुल है ..."

श्रीमती मीनाक्षी स्वामी ((www.meenakshiswami.blogspot.in) ने भी रेल में बैठी स्त्री के पढने की कोशिश कर रही हैं |

इतने बड़े बड़े धुरंधरो के बीच मैंने  (www.jindagikeerahen.blogspot.in) भी "हाथ के लकीरों" को अपने शब्दों में पढने की कोशिश की है | उम्मिद्तः आप सब पसंद करेंगे ...|

अपने रचना के ठीक बाद रश्मि प्रभा "दी" (www.lifeteacheseverything.blogspot.in)को पढ़ कर मुझे खुद के काबिलियत पर फख्र होने लगता है | दीदी की रचना "तथावास्तु और सब ख़त्म" के लिए मेरे पास शब्द नहीं है |

श्रीमती रश्मि रविजा जी (www.rashmiravija.blogspot.in) जो एक बेहतरीन कथाकार हैंकविता में बहती हुई कहती हैं..
"सारे कम्बीनेशन सही हैं 
धूसर की साँझ
अँधेरा कमरा 
ये उदास मन
और काली काफी"
बड़ा अजीब लगता हैएक प्यारी सी हंसी के साथ लगे फोटो के साथ रश्मि जी बड़ी बखूबी के साथ उदासी का शब्द चित्रण कर रही हैं |

श्री राजेंद्र तेला जी (www.nirantarajmer.com) रूठे हुए नींद को बुलाने की कोशिश कर रहे हैं, कहते हैं....
"रात 
नींद को बुलाता रहा
करवटे बदलता रहा
पर नींद मानो 
रूठ कर बैठ गयी"

"ॐ" का उद्घोष करती श्रीमती लावण्या दीपक शाह जी (www.lavanyashah.com) कहती हैं.......
"उंगलियाँ छूती है तार को 
बजती महाध्वनी, आघोष
मृत्यु आह्वान का
शिथिल करों से , वही स्वर
उभरेगा बीती रात को.."

मेरी मित्र श्रीमती वंदना गुप्ता जी (www.vandana-zindagi.blogspot.in) स्त्री दर्द व उसके शोषण को शब्द देते हुए कहना चाहती हैं
"पूरा ब्रहामंड दर्शन किया तुमने
पर फिर भी न तुम्हारी कुत्सितता गयी
फिर भी अधूरी रही तुम्हारी खोज
और तुम उसी की चाह (?) में............"

श्रीमती वाणी शर्मा "दी" (www.teremeregeet.blogspot.in) स्त्री की सम्पूर्णता का अहसास अपनी रचना में कर रही हैं 
"मिचमिचाती अधमुंदी पलकों में
सपनीले मोती जगमगाए
मेरी सुनी गोद भरा आई
जब यह नन्ही कली मुस्कुराई "

श्री विजय कुमार सप्पत्ति जी (www.poemsofvijay.blogspot.in)अपनी माँ को शब्दों में तलाशते हुए कहते हैं -
"माँ को मुझे कभी तलाशना नहीं पड़ा
वो हमेशा ही मेरे पास थी और है अब भी ...."

श्रीमती विभारानी श्रीवास्तव "दी" (www.vranishrivastava.blogspot.in)  शब्दों के सहारे जख्म कुरेदने की कोशिश करती है | दी अपने परिचय में भी कहती है मैं कवियत्री नहीं हूँ, बस अपना वजूद तलाश रही हूँ | बोलते शब्दों के साथ एक लड़की का दर्द दिखता है ........
"एक बेटी
जब अपने मायके को भरोसा दे
ससुराल में सबको अपना बनाते बनाते
परायी हो जाती है...."

श्रीमती शिखा वार्ष्णेय (www.shikhakriti.blogspot.co.uk), मेरी अभिन्न मित्र, ब्लाग जगत की बेहतरीन लेखिकाओं में से एक जो अपने जीवंत यात्रा वृतांत के लिए मशहूर है, ने कुछ सहेजे हुए पलों को शब्द में उतारते हुए कहती है.... कितने प्यारे से शब्द हैं, देखिये....
"रात के साये में कुछ पल
मन के किसी कोने में झिलमिलाते हैं
सुबह होते ही वो पल
कहीं खो से जाते हैं
कभी लिहाफ के अन्दर
कभी बाजु के तकिये पर...."

अब ये पढ़िए..................
"क्या छूकर किसी किताब या पन्ने को
या छोड़े गए ग्लास को
या फिर तुम्हारी किसी तस्वीर को
क्या कम लगेगी मुझे तुम्हारी कमी
क्या लगेगा जैसे मैंने छुआ हो तुम्हें
और तुमने भी बालों में मेरे उँगलियाँ फिराई हो जैसे............"
..... दिल को छूते हुए शब्द लगे न..!श्रीमती शेफाली गुप्ता जी (www.guptashaifali.blogspot.in) "उसकी" कमी कैसे कविता में खलती है, या जाता रही हैं, बहुत बेहतरीन भाव मुझे लगे....!

श्रीमती संगीता स्वरुप "दी" (www.geet7553.blogspot.in) भाव विभोर हो पूछ रही हैं किसे अर्पण करूँ...
"भाव सुमन लिए हुए
नैवेध दीप सजे हुए
प्रेम की पुष्पांजलि को
मैं किसे अर्पण करूँ?"

श्री सतीश सक्सेना सर (www.satish-saxena.blogspot.in), कुछ दिनों पहले ही इनकी काव्य संग्रा "मेरे गीत" का प्रकाशन हुआ है, ये माँ की याद में कहते हैं...
"हम जी न सकेंगे दुनिया में
माँ जन्मे कोख तुम्हारी से...."

श्री समीर लाल "भैया" (www.udantashtari.blogspot.in) अपनी घर की वापसी पर कहते हैं ......
"उम्र के इस पड़ाव पर आ
निकलता हूँ जिस शाम
मैं घर से अपने
सात समुन्दर पार आने को."

मेरे बड़े भैया श्री सलिल वर्मा (www.chalabihari.blogspot.in) जो ब्लॉग जगत में एक दम अलग हसमुख लेकिन बहुत ही संजीदा शख्स के रूप में जाने जाते हैं, एक भिखारी की एक्टिंग सवाल न कर उल्टा कहते हैं ....
"यदि एक्टिंग है तो अद्भुत है 
करोडो से कम अमिताभ भी नहीं लेता
इस एक्टिंग के
इस बेचारे ने तो करोडो का खजाना
कोडियों में माल बेचा है
तभी जनपथ पर बैठा भीख देखो मांगता है ...."

भगवान लक्ष्मण की माँ सुमित्रा के संताप/दर्द को शब्दों में उद्दृत करते हुए श्रीमती साधना वैध जी (www.sudhinama.blogspot.in) में कहती है ..
"नहीं समझ पाती जीजी
रक्ताश्रू तो मैंने भी
चौदह वर्ष तक तुमसे
कम नहीं बहाए...."

सदा के नाम से जाने जाने वाली ब्लॉगर सीमा सिंघल जी (www.sadalikhnablogspot.in) दर्द से सराबोर रचना में कहती है ....
"क्यूंकि जिंदगी का कोई सवाल नहीं था उससे"

श्रीमती सुनीता शानू "दी" (www.shanoospoem.blogspot.in) के "विचार" कविता में ऐसे बोलते हैं ..
"कभी कभी आत्मा के गर्भ में
रह जाते हैं कुछ अंश
दुखदायी अतीत में
जो उम्र के साथ साथ
फलते फूलते लिपटे रहते हैं "

सबसे अंत में जानी मानी कवियत्री श्रीमती हरकीरत हीर जी(www.harkirathaqeer.blogspot.in) की मोहब्बत से भरी रचना बोल उठती है ..............
"हाँ आज में
मोहब्बत की अदालत में खड़ी होकर
तुम्हें हर रिश्ते से मुक्त करती हूँ....." 

इस तरह एक से बढ़ कर एक मनको से पिरोकर बनाई गयी इस माला को यानि ये पुस्तक "शब्दों के अरण्य में" को हर हिंदी काव्य की समझ रखने वालो के बुक शेल्फ में जरुर होनी चाहिए , ऐसा मुझे लगता है |
100 पेज के इस पुस्तक का मूल्य 200/- और फ्लिप्कार्ट के साईट (http://www.flipkart.com/shabdon-ke-aranya-mein-938139413x/p/itmdbk4gfqzgg3zh?pid=9789381394137&ref=c2e6a587-a298-452c-bcb5-11f1e2b7b3d3)  पर भी उपलब्ध है ! आप इसे प्रकाशक/संपादिका से कह कर भी इसकी प्रति मंगवा सकते है !
प्रकाशक का पता है :
हिंद युग्म
1, जिया सराय
हौज़ खास, नई दिल्ली 
110016
(मोबाइल: 9873734046) 

आप सबका अभिन्न 
मुकेश कुमार सिन्हा