जिंदगी की राहें

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Friday, May 20, 2016

निवेदन



कुछ बहुत अपने
जिन्होंने जीना सिखाया,
जिंदगी को दिशा दी
जैसे खेत में फड़फड़ाता झंडा बताता है
अभी हवा दक्खिन की ओर बह रही !

जिनको हर वक़्त पाते थे
नितांत अपनी परिधि में
इन दिनों,
वो भी अलग वक्र कटाव पर
बिंदु भर मिलते हैं
और, फिर..
एक समान ढलाव में दूरी बनाते हुए दूर हो जाते हैं

ये आवर्ती सामीप्य
अाभासी दुनिया को सच करती है क्या?
पेंडुलम की भाँति कभी दूर कभी पास
पर, ऐसा क्यों लगता है कि फिर वो दूरी कम होगी!

हर बार तो ऐसा ही होता है न
मैंने भी सोच लिया ...
पक्की दुश्मनी करनी है मुझे
बिना एक दूसरे के अक्षांश को काटे
अलग अलग गोलार्धों में घूमना संभव नहीं है क्या ?

क्यों? मैं ही क्यूँ..
हारूं?
हर बार की तरह क्यूँ न इस बार भी मैं ही इतराऊं

सोच लो! नो ऑप्शंस ! चुपचाप मेरी परिधि में आ जाओ,

हाँ! अभी भी वापस नहीं लिया वो अधिकार
गाल मेरा थप्पड़ तुम्हारा.. बाकी तुम जानो!!
_____________________
कविता कभी कभी संवाद होती है
निर्भर करता है शब्दों के सम्प्रेषण का !
एकतरफा संवाद कह सकते हैं 

रेणुका ओक के हाथो हमिंग बर्ड 

smile emoticon

3 comments:

अभिव्यक्ति मेरी said...

वेहतरीन भावाभिव्यक्ति। सोचोंं की गहराई। मुझे बहुत पसंद आयी आपकी अभिव्यक्ति।

Madhulika Patel said...

बहुत ही सुंदर शब्द रचना ।

कविता रावत said...

बहुत सुंदर रचना...